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अमू॑रः क॒विरदि॑तिर्वि॒वस्वा॑न्त्सुसं॒सन्मि॒त्रो अति॑थिः शि॒वो नः॑। चि॒त्रभा॑नुरु॒षसां॑ भा॒त्यग्रे॒ऽपां गर्भः॑ प्र॒स्व१॒॑ आ वि॑वेश ॥३॥

English Transliteration

amūraḥ kavir aditir vivasvān susaṁsan mitro atithiḥ śivo naḥ | citrabhānur uṣasām bhāty agre pāṁ garbhaḥ prasva ā viveśa ||

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Pad Path

अमू॑रः। क॒विः। अदि॑तिः। वि॒वस्वा॑न्। सु॒ऽसं॒सत्। मि॒त्रः। अति॑थिः। शि॒वः। नः॒। चि॒त्रऽभा॑नुः। उ॒षसा॑म्। भा॒ति॒। अग्रे॑। अ॒पाम्। गर्भः॑। प्र॒ऽस्वः॑। आ। वि॒वे॒श॒ ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:9» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कैसा विद्वान् पूजनीय होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (उषसाम्) प्रभात वेलाओं के (अग्रे) पहिले (चित्रभानुः) अद्भुत प्रकाशयुक्त (विवस्वान्) सूर्य के समान (अपाम्) अन्तरिक्ष के बीच (गर्भः) गर्भ के तुल्य वर्त्तमान (प्रस्वः) अपने सम्बन्धी उत्तम जनोंवाला हुआ (भाति) प्रकाशित होता है (सु, संसत्) सुन्दर सभावाला (मित्रः) मित्र (अमूरः) मूढ़ता रहित (कविः) प्रवृत्त बुद्धिवाला पण्डित (अदितिः) पिता के तुल्य वर्त्तमान (अतिथिः) प्राप्त हुए विद्वान् के तुल्य (नः) हमारा (शिव) मङ्गलकारी हुआ (आ, विवेश) प्रवेश करता है, वही विद्वान् सब को सत्कार करने योग्य होता है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो विद्वानों में मुखिया, सूर्य के तुल्य सत्य-न्याय का प्रकाशक, अविद्यादि दोषों से रहित, धर्मात्मा, विद्वान्, पुत्र के तुल्य प्रजाओं का पालन करता है, वही अतिथि के तुल्य सत्कार करने योग्य होता है ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कीदृशो विद्वान्पूजनीयोऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! य उषसामग्रे चित्रभानुर्विवस्वानिवापांगर्भ इव प्रस्वः सन् भाति सुसंसन्मित्रोऽमूरः कविरदितिरतिथिरिव नः शिवः सन्नस्मा आ विवेश स एव विद्वान् सर्वैः सत्कर्त्तव्योऽस्ति ॥३॥

Word-Meaning: - (अमूरः) अमूढः। अत्र वर्णव्यत्ययेन ढस्य स्थाने रः। (कविः) क्रान्तदर्शनः प्राज्ञः (अदितिः) पितेव वर्त्तमानः (विवस्वान्) सूर्य इव (सुसंसत्) शोभना संसत्सभा यस्य सः (मित्रः) सुहृत् (अतिथिः) आप्तो विद्वानिव (शिवः) मङ्गलकारी (नः) अस्माकम् (चित्रभानुः) अद्भुतप्रकाशः (उषसाम्) प्रभातवेलानाम् (भाति) प्रकाशते (अग्रे) पुरस्तात् (अपाम्) अन्तरिक्षस्य मध्ये (गर्भः) गर्भ इव वर्त्तते (प्रस्वः) प्रकृष्टाः स्वे स्वकीयजना यस्य सः (आ विवेश) आविशेत् ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यो विदुषामग्रगण्यः सूर्य इव सत्यन्यायप्रकाशकोऽविद्यादिदोषरहितो धर्मात्मा विद्वान् पुत्रवत्प्रजाः पालयति स एवाऽतिथिवत्सत्कर्तव्यो भवति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो विद्वानात अग्रणी सूर्याप्रमाणे सत्य न्यायाचा प्रकाशक, अविद्या इत्यादी दोषांनी रहित, धर्मात्मा, विद्वान, पुत्राप्रमाणे प्रजेचे पालन करतो तोच अतिथीप्रमाणे सत्कार करण्यायोग्य असतो. ॥ ३ ॥