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यदेमि॑ प्रस्फु॒रन्नि॑व॒ दृति॒र्न ध्मा॒तो अ॑द्रिवः । मृ॒ळा सु॑क्षत्र मृ॒ळय॑ ॥

English Transliteration

yad emi prasphurann iva dṛtir na dhmāto adrivaḥ | mṛḻā sukṣatra mṛḻaya ||

Pad Path

यत् । एमि॑ । प्र॒स्फु॒रन्ऽइ॑व । दृतिः॑ । न । ध्मा॒तः । अ॒द्रि॒ऽवः॒ । मृ॒ळ । सु॒ऽक्ष॒त्र॒ । मृ॒ळय॑ ॥ ७.८९.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:89» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यत्) जो मैं (दृतिः) धौंकनी के (न) समान (ध्मातः) दूसरों की वायुरूप बुद्धि से प्रेरित किया गया (एमि) अपनी जीवनयात्रा करता हूँ, वह यात्रा (स्फुरन्निव) केवल श्वासोच्छ्वासरूप है, उसमें जीने का कुछ प्रयोजन नहीं, (अद्रिवः) हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! (मृळ) आप हमारी रक्षा करें (सुक्षत्र) हे सर्वरक्षक परमात्मन् ! (मृळय) आप हमको सुख दें ॥२॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो पुरुष मनुष्यजन्म के धर्म, अर्थ काम, मोक्ष इन चारों फलों से विहीन हैं, वे पुरुष लोहनिर्म्माता की धौंकनी के समान केवल श्वासमात्र से जीवित प्रतीत होते हैं, वास्तव में वे पुरुष चर्म्मनिर्मित (दृतिः) चमड़े की खाल के समान निर्जीव हैं, इसलिए पुरुष को चाहिये कि वह सदैव उद्योगी और कर्म्मयोगी बनकर सदैव अपने लक्ष्य के लिए कटिबद्ध रहे। अपुरुषार्थी होकर जीना केवल चर्म्मपात्र के समान प्राणयात्रा करना है। इस अभिप्राय से इस मन्त्र में उद्योग=अर्थात् कर्म्मयोग का उपदेश किया है ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यत्) यस्मात् (दृतिः) भस्त्रा (न) इव (ध्मातः) वायुनेवान्यबुद्ध्या प्रेरितः (एमि) स्वजीवनरक्षां करोमि सा (स्फुरन्निव) केवलं श्वासोच्छ्वासमात्रमस्ति यतो न जीवनप्रयोजनं तत्र (अद्रिवः) हे सर्वशक्तिमन् ! (मृळ) मां रक्ष (सुक्षत्र) हे परमरक्षक ! (मृळय) मां सुखय ॥२॥