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क्व१॒॑ त्यानि॑ नौ स॒ख्या ब॑भूवु॒: सचा॑वहे॒ यद॑वृ॒कं पु॒रा चि॑त् । बृ॒हन्तं॒ मानं॑ वरुण स्वधावः स॒हस्र॑द्वारं जगमा गृ॒हं ते॑ ॥

English Transliteration

kva tyāni nau sakhyā babhūvuḥ sacāvahe yad avṛkam purā cit | bṛhantam mānaṁ varuṇa svadhāvaḥ sahasradvāraṁ jagamā gṛhaṁ te ||

Pad Path

क्व॑ । त्यानि॑ । नौ॒ । स॒ख्या । ब॒भू॒वुः॒ । सचा॑वहे॒ इति॑ । यत् । अ॒वृ॒कम् । पु॒रा । चि॒त् । बृ॒हन्त॑म् । मान॑म् । व॒रु॒ण॒ । स्व॒धा॒ऽवः॒ । स॒हस्र॑ऽद्वारम् । ज॒ग॒म॒ । गृ॒हम् । ते॒ ॥ ७.८८.५

Rigveda » Mandal:7» Sukta:88» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:5


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (त्यानि) वह (नौ) हमारी (सख्या) मैत्री (क्व) कहाँ (बभूवुः) है, (यत्) जो (पुरा) पूर्वकाल में (अवृकं) हिंसारहित थी, (सचावहे) उसकी हम सेवा करें (चित्) और (ते) तुम्हारे (सहस्रद्वारं) अनन्त ऐश्वर्यवाले (गृहं) स्वरूप को (जगम) प्राप्त हों, जो (बृहन्तं, मानम्) सीमारहित है। (स्वधावः, वरुण) हे अनन्तैश्वर्य्य परमात्मन् ! हम आपको उक्त स्वरूप को प्राप्त हों ॥५॥
Connotation: - जो जिज्ञासु सब कर्मों को हिंसारहित करता है और परमात्मा के साथ निष्पापादि गुणों को धारण करके उसकी मैत्री को उपलब्ध करता है, वह उसके अनन्त ऐश्वर्य्ययुक्त स्वरूप को प्राप्त होता है। तात्पर्य्य यह है कि जब तक जिज्ञासु अपने आपको उसकी कृपा का पात्र नहीं बनाता, तब तक वह उसकी स्वरूपप्राप्ति का अधिकारी नहीं बन सकता ॥५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (त्यानि) सा (नौ) अस्माकं (सख्या) मैत्री (क्व) कुत्र (बभूवुः) अस्ति (यत्) या (पुरा) पूर्वस्मिन्काले (अवृकम्) हिंसारहिताऽभूत् (सचावहे) तां सेवेमहि (चित्) तथा च (ते) तव (सहस्रद्वारम्) अनेकोपायलभ्यं (गृहम्) स्वरूपं (जगम) प्राप्नुयाम यदैश्वर्यं (बृहन्तम्, मानम्) असीमास्ति (स्वधावः, वरुण) हे स्वैश्वर्येण विराजमान परमात्मन् ! वयं भवत उक्तस्वरूपं प्राप्नुयाम ॥५॥