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अव॒ सिन्धुं॒ वरु॑णो॒ द्यौरि॑व स्थाद्द्र॒प्सो न श्वे॒तो मृ॒गस्तुवि॑ष्मान् । ग॒म्भी॒रशं॑सो॒ रज॑सो वि॒मान॑: सुपा॒रक्ष॑त्रः स॒तो अ॒स्य राजा॑ ॥

English Transliteration

ava sindhuṁ varuṇo dyaur iva sthād drapso na śveto mṛgas tuviṣmān | gambhīraśaṁso rajaso vimānaḥ supārakṣatraḥ sato asya rājā ||

Pad Path

अव॑ । सिन्धु॑म् । वरु॑णः । द्यौःऽइ॑व । स्था॒त् । द्र॒प्सः । न । श्वे॒तः । मृ॒गः । तुवि॑ष्मान् । ग॒म्भी॒रऽसं॑सः । रज॑सः । वि॒ऽमानः॑ । सु॒पा॒रऽक्ष॑त्रः । स॒तः । अ॒स्य । राजा॑ ॥ ७.८७.६

Rigveda » Mandal:7» Sukta:87» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:9» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:6


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ARYAMUNI

अब परमात्मा की शक्ति का प्रकारान्तर से वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (द्यौरिव) सूर्य के समान स्वतःप्रकाश (वरुणः) परमात्मा (सिन्धुं) समुद्र को (अवस्थात्) भले प्रकार मर्यादा में रखता, (न, द्रप्सः) वह चलायमान नहीं होता, वह (श्वेतः) शुद्धस्वरूप (तुविष्मान्) कुटिलगतिवालों के लिए (मृगः) सिंहसमान है, (गम्भीरशंसः) वह अकथनीय है, यह (रजसः, विमानः) सूक्ष्म जलकणों का भी निर्माता है, जिसका (सुपारक्षत्रं) राज्य बल अपार और जो (सतः, अस्य, राजा) इस सत्=विद्यमान जगत् का स्वामी है ॥६॥
Connotation: - वह पूर्ण परमात्मा, जिसने समुद्रादि अगाध जलाशयों की मर्यादा बाँध दी है, वह रेणु आदि सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों का निर्माता, वह अनन्तशक्तिसम्पन्न और वही इस सद्रूप जगत् का राजा है ॥ स्मरण रहे कि जो लोग इस संसार को मिथ्या मानते हैं, वे “सतो अस्य राजा” इस वाक्य से शिक्षा लें, जिसमें वेद भगवान् ने मिथ्यावादियों के मत का स्पष्ट खण्डन किया है कि यह जगत् सद्रूप है, मिथ्या नहीं ॥६॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मशक्तिः प्रकारान्तरेण वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (द्यौरिव) सूर्य इव स्वतो भासमानः (वरुणः) परमात्मा (सिन्धुम्) समुद्रं (अवस्थात्) सुस्थिरमकरोत् (न, द्रप्सः) सोऽपि च न सञ्चलति (श्वेतः) शुद्धस्वरूपः सः (तुविष्मान्) दुराचारिषु विषये (मृगः) मृगपतिरिव भवति (गम्भीरशंसः) अकथनीयोऽस्ति (रजसः, विमानः) सूक्ष्मतरानपि जलकणानुत्पादयति, यस्य (सुपारक्षत्रम्) साम्राज्यमपारम्, तथा च यः (सतः, अस्य, राजा) सत्तावतोऽस्य जगतो राजा प्रभुः ॥६॥