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परि॒ स्पशो॒ वरु॑णस्य॒ स्मदि॑ष्टा उ॒भे प॑श्यन्ति॒ रोद॑सी सु॒मेके॑ । ऋ॒तावा॑नः क॒वयो॑ य॒ज्ञधी॑रा॒: प्रचे॑तसो॒ य इ॒षय॑न्त॒ मन्म॑ ॥

English Transliteration

pari spaśo varuṇasya smadiṣṭā ubhe paśyanti rodasī sumeke | ṛtāvānaḥ kavayo yajñadhīrāḥ pracetaso ya iṣayanta manma ||

Pad Path

परि॑ । स्पशः॑ । वरु॑णस्य । स्मत्ऽइ॑ष्टाः । उ॒भे इति॑ । प॒श्य॒न्ति॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । सु॒मेके॒ इति॑ सु॒ऽमेके॑ । ऋ॒तऽवा॑नः । क॒वयः॑ । य॒ज्ञऽधी॑राः । प्रऽचे॑तसः । ये । इ॒षय॑न्त । मन्म॑ ॥ ७.८७.३

Rigveda » Mandal:7» Sukta:87» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:3


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ये) जो (ऋतावानः) सत्यवादी (यज्ञधीराः) कर्मकाण्डी (प्रचेतसः) मेधावी (कवयः) विद्वान् (मन्म, इषयन्त) ईश्वर की स्तुति करते हैं, जो उनको (उभे, रोदसी) द्युलोक तथा पृथिवीलोक दोनों (पश्यन्ति) देखते हैं, जो (सुमेके, परि) देखने में सर्वोपरि सुन्दर अर्थात् दिव्यदृष्टिवाले होने से (वरुणस्य) परमात्मा के (स्मदिष्टाः) प्रशंसनीय (स्पशः) दूत हैं ॥३॥
Connotation: - जो पुरुष परमात्मपरायण होते हैं, उनका यश पृथिवी तथा द्युलोक के मध्य में फैल जाता, इसी अभिप्राय से उक्त लोकों को साक्षीरूप से वर्णन किया है। लोकों का देखना यहाँ उपचार से वर्णन किया गया है, वास्तविक नहीं, क्योंकि वास्तव में देखने तथा साक्षी देने का धर्म पृथिवी तथा द्युलोक में न होने से तत्रस्थ मनुष्यों की लक्षणा कर लेनी चाहिए। पृथिवी तथा द्युलोक के मध्य में सब प्राणीवर्ग उन मनुष्यों की साक्षी देते हैं, जो सदाचारी तथा ईश्वरपरायण होते हैं अर्थात् वे कभी छिप नहीं सकते, इसलिए प्रत्येक पुरुष को उचित है कि वह ईश्वरपरायण होकर संसार में अपना यश विस्तृत करे ॥३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ये) ये जनाः (ऋतावानः) सत्यवादिनः (यज्ञधीराः) कर्मकाण्डिनः (प्रचेतसः) मेधाविनः (कवयः) विद्वांसः (मन्म, इषयन्त) परमात्मानं स्तुवन्ति, तान् (उभे, रोदसी) द्यावापृथिव्यावेते  उभे (पश्यन्ति) ईक्षेते, ये हि (सुमेके, परि) दृष्टिसुखदे दिव्यचक्षुत्वात् (वरुणस्य) ईश्वरस्य (स्मदिष्टाः) प्रशंसनीये (स्पशः) दूतिके स्तः ॥३॥