Word-Meaning: - (इन्द्रावरुणा) हे युद्धविद्या में निपुण राजपुरुषों ! (घोषः, दिवि, आरुहत्) तुम्हारे शास्त्रों का शब्द आकाश में व्याप्त हो (सं, भूम्याः, अन्ताः) सम्पूर्ण भूमि का अन्त (ध्वसिराः) योद्धाओं से विनाश होता हुआ (अदृक्षत) देखा जाय (अरातयः) शत्रु (माँ) मुझको (जनानां) सब मनुष्यों के समक्ष (उप, अस्थुः) आकर प्राप्त हों और (अवसा) रक्षा चाहते हुए (हवनश्रुता) वैदिकवाणियों के श्रवण द्वारा (अर्वाक्, आगतम्) हमारे सम्मुख आवें ॥३॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजधर्म का पालन करनेवाले विद्वानों ! तुम शत्रुसेना पर ऐसा घोर आक्रमण करो कि तुम्हारे अस्त्रों-शास्त्रों का शब्द आकाश में गूँज उठे, जिससे तुम्हारे शत्रु वेदवाणी का आश्रयण करते हुए तम्हारी शरण को प्राप्त हों अर्थात् अपने दुष्टभावों का त्याग करते हुए सब प्रजाजनों के समक्ष वेद की शरण में आवें और तुम्हारे योद्धा लोग सीमान्तों में विजय प्राप्त करते हुए शत्रुओं के दुर्गों को छिन्न-भिन्न करके सर्वत्र अपना अधिकार स्थापन करें, जिससे प्रजा वैदिकधर्म का भले प्रकार पालन कर सके ॥३॥