अब दुराधर्ष राजा की विभूति कथन करते हैं।
Word-Meaning: - (यस्य) जिस राजा के (अध्वरं) यज्ञ को (देवा) शस्त्रास्त्रादिविद्यासम्पन्न विद्वान् (वीथः) संगत होकर (गच्छथः) जाते हैं, (तं) उस राजा को अथवा (मर्तस्य) मरणधर्मा मनुष्य को (परिह्वृतिः) कोई बाधा (नशते, न) नाश नहीं कर सकती और (न) नाही (कुतः, चन) किसी ओर से (तपः) कोई ताप उसका नाश कर सकता है, (मर्त्यम्) जिस मनुष्य को (इन्द्रावरुणा) विद्युत् तथा जलीय विद्या जाननेवाले विद्वान् प्राप्त होते हैं, (तं) उसको (न, अंहः) न कोई पाप (न, दुरितानि) न कोई दुष्कर्म नाश कर सकता है ॥७॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजा तथा यजमानो ! तुम लोग अस्त्रशस्त्रविद्यासम्पन्न विद्वानों को अपने यज्ञों में बुलाओ, क्योंकि वारुणास्त्र तथा आग्नेयास्त्र आदि अस्त्रविद्यावेत्ता विद्वान् जिस राजा वा यजमान के यज्ञ में जाते हैं अथवा जिनका उपर्युक्त विद्वानों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, उनको न कोई ताप और न कोई अन्य बाधा नाश को प्राप्त कर सकती है। उनको न कोई शत्रु पीड़ा दे सकता और न कोई पाप उनका नाश कर सकता है अर्थात् विद्वानों के सत्सङ्ग से उनके पाप क्षय होकर जीवन पवित्र हो जाता है, इसलिए राजाओं को उचित है कि विद्वानों का सत्कार करते हुए उनको अपना समीपी बनावें, जिससे वे किसी विपत्ति को न देखें ॥७॥