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प्रति॑ षीम॒ग्निर्ज॑रते॒ समि॑द्ध॒: प्रति॒ विप्रा॑सो म॒तिभि॑र्गृ॒णन्त॑: । उ॒षा या॑ति॒ ज्योति॑षा॒ बाध॑माना॒ विश्वा॒ तमां॑सि दुरि॒ताप॑ दे॒वी ॥

English Transliteration

prati ṣīm agnir jarate samiddhaḥ prati viprāso matibhir gṛṇantaḥ | uṣā yāti jyotiṣā bādhamānā viśvā tamāṁsi duritāpa devī ||

Pad Path

प्रति॑ । सी॒म् । अ॒ग्निः । ज॒र॒ते॒ । सम्ऽइ॑द्धः । प्रति॑ । विप्रा॑सः । म॒तिऽभिः॑ । गृ॒णन्तः॑ । उ॒षाः । या॒ति॒ । ज्योति॑षा । बाध॑माना । विश्वा॑ । तमां॑सि । दुः॒ऽइ॒ता । अप॑ । दे॒वी ॥ ७.७८.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:78» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:2


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ARYAMUNI

अब परमात्मस्वरूप का महत्त्व कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (देवी) परमात्मा का दिव्यस्वरूप (दुरिता अप) पापों को दूर करता तथा (विश्वा तमांसि) सब प्रकार के अज्ञानों को (बाधमाना) निवृत्त करता हुआ (ज्योतिषा) अपने ज्ञान से (उषाः) उच्च गति को (याति) प्राप्त है। (विप्रासः) वेदवेत्ता ब्राह्मण उसको (मतिभिः) स्व बुद्धियों से (गृणन्तः) ग्रहण करते हैं, (प्रति) उनको परमात्मस्वरूप (समिद्धः) सम्यक् रीति से प्रकाशित होता और (अग्निः) ज्योतिस्वरूप परमात्मा (सीं) भली-भाँति (प्रति जरते) प्रत्येक में व्यापकभाव से प्रकाशित हो रहा है ॥२॥
Connotation: - ज्ञानस्वरूप परमात्मा का दिव्यस्वरूप सदैव प्रकाशमान हुआ अज्ञानरूप अन्धकार को निवृत्त करके ज्ञानरूप ज्योति का विस्तार करता अर्थात् उषारूप ज्योति के समान उच्चभाव को प्राप्त होता है। वह वेदवेत्ता ब्राह्मणों की बुद्धि का विषय होने से उनके प्रति प्रकाशित होता अर्थात् वे परमात्मस्वरूप को अपनी निर्मल बुद्धि से भली-भाँति अवगत करते हैं। अधिक क्या, उसका दिव्य स्वरूप संसार के प्रत्येक पदार्थ में ओत-प्रोत हो रहा है, इसलिए सब पुरुषों को उचित है कि वह परमात्मस्वरूप को अपने-अपने हृदय में अवगत करते हुए अपने जीवन को उच्च बनावें अर्थात् जिस प्रकार उषःकाल अन्धकार को निवृत्त करके प्रकाशमय हो जाता है, इसी प्रकार परमात्मा अज्ञानरूप अन्धकार को दूर करके अपने प्रकाश से विद्वानों के हृदय को प्रकाशित करता है ॥२॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मस्वरूपमहत्त्वं कथ्यते।

Word-Meaning: - (देवी) परमात्मनो दिव्यस्वरूपं (दुरिता अप) पापानि दूरीकुर्वत् तथा (विश्वा तमांसि) सर्वविधान्यज्ञानानि (बाधमाना) निवर्तयत् (ज्योतिषा) स्वज्ञानेन (उषाः) अभ्युन्नतिं (याति) प्राप्नोति (विप्रासः) ये वेदवेत्तारो ब्राह्मणास्तं (मतिभिः) स्वबुद्धिभिः (गृणन्तः) गृह्णन्ति (प्रति) तान्प्रति परमात्मस्वरूपं (समिद्धः) समीचीनरीत्या प्रकाशते, तथा च (अग्निः) ज्योतिःस्वरूपः परमात्मा (सीम्) स्वीकृत्य “सीमिति परिग्रहार्थीयः” निरु० १।७॥ (प्रति जरते) प्रतिभावं व्यापकतया प्रकाशते ॥२॥