Go To Mantra

प्रति॑ के॒तव॑: प्रथ॒मा अ॑दृश्रन्नू॒र्ध्वा अ॑स्या अ॒ञ्जयो॒ वि श्र॑यन्ते । उषो॑ अ॒र्वाचा॑ बृह॒ता रथे॑न॒ ज्योति॑ष्मता वा॒मम॒स्मभ्यं॑ वक्षि ॥

English Transliteration

prati ketavaḥ prathamā adṛśrann ūrdhvā asyā añjayo vi śrayante | uṣo arvācā bṛhatā rathena jyotiṣmatā vāmam asmabhyaṁ vakṣi ||

Pad Path

प्रति॑ । के॒तवः॑ । प्र॒थ॒माः । अ॒दृ॒श्र॒न् । ऊ॒र्ध्वाः । अ॒स्याः॒ । अ॒ञ्जयः॑ । वि । श्र॒य॒न्ते॒ । उषः॑ । अ॒र्वाचा॑ । बृ॒ह॒ता । रथे॑न । ज्योति॑ष्मता । वा॒मम् । अ॒स्मभ्य॑म् । व॒क्षि॒ ॥ ७.७८.१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:78» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:25» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:1


Reads times

ARYAMUNI

अब परमात्मा का स्वरूप वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (अस्याः) आपकी इस महती शक्ति के (प्रथमाः) पहले (केतवः) अनेक हेतु (ऊर्ध्वाः) सबसे ऊँचे (प्रति) हमारे प्रति (अञ्जयः) प्रसिद्ध (अदृश्रन्) देखे जाते हैं अर्थात् हमें स्पष्ट दिखाई देते हैं, जो (विश्रयन्ते) विस्तारपूर्वक फैले हुए हैं। (उषः) हे ज्योतिस्वरूप भगवन् ! (अर्वाचा) आप हमारे सम्मुख आयें अर्थात् हमें अपने दर्शन का पात्र बनायें और (ज्योतिष्मता) अपने तेजस्वी (बृहता) बड़े (रथेन) ज्ञान से (अस्मभ्यं) हमको (वामं) ज्ञानरूप धन (वक्षि) प्रदान करें ॥१॥
Connotation: - जब इस संसार में दृष्टि फैलाकर देखते हैं, तो सबसे पहले परमात्मस्वरूप को बोधन करनेवाले अनन्त हेतु इस संसार में हमारे दृष्टिगत होते हैं, जो सब से उच्च परमात्मस्वरूप को दर्शा रहे हैं, जैसा कि संसार की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय और यह अद्भुत रचना आदि चिह्नों से स्पष्टतया परमात्मा के स्वरूप का बोधन होता है। हे सर्वशक्तिसम्पन्न भगवन् ! आप अपने बड़े तेजस्वी स्वरूप का हमें ज्ञान करायें, जिससे हम अपने आपको पवित्र करें ॥१॥
Reads times

ARYAMUNI

सम्प्रति परमात्मनः स्वरूपं वर्ण्यते।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (अस्याः) अस्या भवदीयमहाशक्तेः (प्रथमाः) आद्याः (केतवः) अनेकहेतवः (ऊर्ध्वाः) अत्युच्चाः (प्रति) मां प्रति (अञ्जयः) प्रसिद्धाः (अदृश्रन्) दृश्यन्ते अर्थान्मया सुस्पष्टा दृश्यन्ते ये (वि श्रयन्ते) विस्तीर्य प्रसृताः (उषः) हे ज्योतिःस्वरूपभगवन् ! (अर्वाचा) भवान् मत्सम्मुखो भवतु अर्थान्मां स्वदर्शनपात्रं विदधातु (ज्योतिष्मता) तथा च स्वतेजस्विना (बृहता) महता (रथेन) ज्ञानेन (अस्मभ्यम्) अस्मभ्यं (वामम्) ज्ञानात्मकधनं (वक्षि) ब्रवीतु–प्रददातु ॥१॥