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ए॒षा स्या यु॑जा॒ना प॑रा॒कात्पञ्च॑ क्षि॒तीः परि॑ स॒द्यो जि॑गाति । अ॒भि॒पश्य॑न्ती व॒युना॒ जना॑नां दि॒वो दु॑हि॒ता भुव॑नस्य॒ पत्नी॑ ॥

English Transliteration

eṣā syā yujānā parākāt pañca kṣitīḥ pari sadyo jigāti | abhipaśyantī vayunā janānāṁ divo duhitā bhuvanasya patnī ||

Pad Path

ए॒षा । स्या । यु॒जा॒ना । प॒रा॒कात् । पञ्च॑ । क्षि॒तीः । परि॑ । स॒द्यः । जि॒गा॒ति॒ । अ॒भि॒ऽपश्य॑न्ती । व॒युना॑ । जना॑नाम् । दि॒वः । दु॒हि॒ता । भुव॑नस्य । पत्नी॑ ॥ ७.७५.४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:75» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:4


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ARYAMUNI

अब उषा को रूपकालङ्कार से वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (एषा) यह उषा (जनानां) मनुष्यों को (वयुना) प्राप्त होकर (अभिपश्यन्ती) भले प्रकार देखती हुई (दिवः दुहिता) द्युलोक की कन्या और (भुवनस्य पत्नी) संसार की पत्नीरूप है। (स्या) वह उषा (युजाना स्या) योग को प्राप्त होती हुई (पराकात्) दूर देश से (पञ्च क्षितीः) पृथिवीस्थ पाँच प्रकार के मनुष्यों को (परिसद्यः) सदा के लिये (जिगाति) जागृति उत्पन्न करती है ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में उषा को द्युलोक की कन्या और संसार की पत्नीस्थानीय माना गया है, जिसका तात्पर्य यह है कि इसको द्युलोक से उत्पन्न होने के कारण “कन्या” और पृथिवीलोक पर आकर सर्वभोग्या=सबके भोगने योग्य होने से “पत्नी” कथन की गयी है। उषा में पत्नी भाव का आरोप करने से तात्पर्य यह है कि यह प्रतिदिन प्रातःकाल सब संसारी जनों को उद्बोधन करती है कि तुम उठकर जागो, परमात्मा में जुड़ो और अपनी दिनचर्या में प्रवृत्त होकर अपने-अपने कार्यों को विधिवत् करो, यह मन्त्र का भाव है। पृथिवीस्थ पाँच प्रकार के मनुष्यों का वर्णन पीछे कर आये हैं, इसलिये यहाँ आवश्यकता नहीं ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (एषा) इयमुषाः (जनानाम्) मनुष्यान् (वयुना) प्राप्य (अभिपश्यन्ती) सम्यक् पश्यन्ती (दिवः दुहिता) द्युलोकस्य कन्या तथा च (भुवनस्य पत्नी) संसारस्य पत्नीरूपा अस्ति (स्या) सैवोषाः (युजाना स्या) योगं लभमाना (पराकात्) दूरस्थदेशात् (पञ्चक्षितीः) पृथिवीस्थान् पञ्चधा मनुष्यान् (परिसद्यः) शश्वदर्थं (जिगाति) प्राप्नोति।  जिगातीति गतिकर्म्मसु पठितम्। निघ० २।१४ ॥४॥