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अता॑रिष्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्य प्रति॒ स्तोमं॑ देव॒यन्तो॒ दधा॑नाः । पु॒रु॒दंसा॑ पुरु॒तमा॑ पुरा॒जाम॑र्त्या हवते अ॒श्विना॒ गीः ॥

English Transliteration

atāriṣma tamasas pāram asya prati stomaṁ devayanto dadhānāḥ | purudaṁsā purutamā purājāmartyā havate aśvinā gīḥ ||

Pad Path

अता॑रिष्म । तम॑सः । पा॒रम् । अ॒स्य । प्रति॑ । स्तोम॑म् । दे॒व॒ऽयन्तः॑ । दधा॑नाः । पु॒रु॒ऽदंसा॑ । पु॒रु॒ऽतमा॑ । पु॒रा॒ऽजा । अम॑र्त्या । ह॒व॒ते॒ । अ॒श्विना॑ । गीः ॥ ७.७३.१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:73» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब यज्ञविद्या जाननेवाले विद्वानों से याज्ञिक बनने के लिये प्रार्थना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे यज्ञविद्या जाननेवाले विद्वानों ! आप लोग हमको (अस्य) इस संसार के (तमसः पारं) अज्ञानरूप तम से पार (अतारिष्म) तरायें (प्रति स्तोमं देवयन्तः) इस ब्रह्मयज्ञ की कामना करते हुए हम लोग (दधानाः) उत्तम गुणों को धारण करें (गीः) हमारी वाणी पवित्र हो और हम (पुरुदंसा) कर्मकाण्डी (पुरुतमा) उत्तम गुणोंवाले (पुराजा) प्राचीन और (अमर्त्या) मृत्युराहित्यादि सद्गुणों को धारण करते हुए (हवते) यज्ञकर्म में प्रवृत्त रहें ॥१॥
Connotation: - हे यजमानो ! तुम लोग यज्ञविद्या जाननेवाले विद्वानों से याज्ञिक बनने के लिए जिज्ञासा करो और उनसे यह प्रार्थना करो कि आप हमको याज्ञिक बनायें, जिससे हम इस अविद्यारूप अज्ञान से निवृत्त होकर ज्ञानमार्ग पर चलें। हम उत्तम गुणों के धारण करनेवाले हों और अन्ततः हमको मुक्तिपद प्राप्त हो, क्योंकि यज्ञ ही मुक्ति का साधन है और याज्ञिक पुरुष ही चिरायु होकर अमृत पद को प्राप्त होते हैं, या यों कहो कि जो पुरुष कर्म तथा ज्ञान दोनों साधनों से जिज्ञासा करता है, वही अमृतरूप पद का अधिकारी होता है, इसलिए मुक्ति की इच्छावाले पुरुषों को सदा ही यज्ञ का अनुष्ठान करना श्रेयस्कर है ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ विदुषो याज्ञिको भवितुं प्रार्थयते।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे यज्ञविद्यावेत्तारो विद्वांसः ! भवन्तः अस्मान् (अस्य) एतस्य संसारस्य (तमसः) अज्ञानात् (पारम्) पारं (अतारिष्म) गमयन्तु (स्तोमम् प्रति देवयन्तः) इमं ब्रह्मयज्ञं कामयमाना वयं (दधानाः) उत्तमगुणान् धारयाम, (गीः) अस्माकं वाक् पवित्रा भवतु किञ्च वयं (पुरुदंसा) कर्मकाण्डिनः (पुरुतमा) उत्तमगुणवन्तः (पुराजा) प्राचीनाः (अमर्त्या) मरणादिदुःखरहिताः सन्तः (हवते) यज्ञं करवाम ॥१॥