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सिष॑क्ति॒ सा वां॑ सुम॒तिश्चनि॒ष्ठाता॑पि घ॒र्मो मनु॑षो दुरो॒णे । यो वां॑ समु॒द्रान्त्स॒रित॒: पिप॒र्त्येत॑ग्वा चि॒न्न सु॒युजा॑ युजा॒नः ॥

English Transliteration

siṣakti sā vāṁ sumatiś caniṣṭhātāpi gharmo manuṣo duroṇe | yo vāṁ samudrān saritaḥ piparty etagvā cin na suyujā yujānaḥ ||

Pad Path

सिस॑क्ति । सा । वा॒म् । सु॒ऽम॒तिः । चनि॑ष्ठा । अता॑पि । घ॒र्मः । मनु॑षः । दु॒रो॒णे । यः । वा॒म् । स॒मु॒द्रान् । स॒रितः॑ । पिप॑र्ति । एत॑ऽग्वा । चि॒त् । न । सु॒ऽयुजा॑ । यु॒जा॒नः ॥ ७.७०.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:70» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:17» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुयुजा, युजानः) ज्ञानादि यज्ञों के साथ भली-भाँति जुड़े हुए याज्ञिक लोगो ! (वां) तुम (सा, सुमतिः) उस उत्तम बुद्धिद्वारा (चनिष्ठा) अनुष्ठानी बनकर (सिषक्ति) इस यज्ञ को सिञ्चन करो, (यः) जो (मनुषः) मनुष्य का (घर्मः) यज्ञसम्बन्धी स्वेद है, वह (दुरोणे) यज्ञगृह में (अतापि) तपा हुआ (वां) तुम्हारे (समुद्रान्, सरितः) समुद्र को नदियों के समान तुम्हारी आशाओं को (पिपर्ति) पूर्ण करता है (न, चित्, एतग्वा) अन्यथा कभी नहीं ॥२॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे याज्ञिक लोगो ! तुम उत्तम बुद्धि द्वारा अनुष्ठानी बनकर यज्ञ का सेवन करो, क्योंकि तुम्हारे तप से उत्पन्न हुआ स्वेद मानो सरिताओं का रूप धारण करके तुम्हारे मनोरथरूपी समुद्र को परिपूर्ण करता है अर्थात् जब तक पुरुष पूर्ण तपस्वी बनकर अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए उद्यत नहीं होता, तब तक उस लक्ष्य की सिद्धि नहीं होती, इसलिए आप लोग अपने वैदिक लक्ष्यों की पूर्ति तपस्वी बनकर ही कर सकते हो, अन्यथा नहीं ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सुयुजा, युजानः) हे शोभनयज्ञयुक्ता यजमानाः ! (वाम्) यूयं (सा, सुमतिः) प्रसिद्धया सुबुध्या (चनिष्ठा) अनुष्ठानिनः सन्तः एनं यज्ञं (सिषक्ति) सिञ्चत, (यः) यः (मनुषः) मनुष्याणां (घर्मः) यज्ञजः स्वेदोऽस्ति, सः (दुरोणे) यज्ञगृहे (अतापि) तप्तः (वाम्) युष्माकं मनोरथान् (समुद्रान् सरितः) समुद्रान् नद्य इव (पिपर्ति) पूरयति (एतग्वा) एतस्मादन्यथा (चित्) कदाचित् (न) न सम्भवेत् ॥२॥