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प्रा॒चीनो॑ य॒ज्ञः सुधि॑तं॒ हि ब॒र्हिः प्री॑णी॒ते अ॒ग्निरी॑ळि॒तो न होता॑। आ मा॒तरा॑ वि॒श्ववा॑रे हुवा॒नो यतो॑ यविष्ठ जज्ञि॒षे सु॒शेवः॑ ॥३॥

English Transliteration

prācīno yajñaḥ sudhitaṁ hi barhiḥ prīṇīte agnir īḻito na hotā | ā mātarā viśvavāre huvāno yato yaviṣṭha jajñiṣe suśevaḥ ||

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Pad Path

प्रा॒चीनः॑। य॒ज्ञः। सुऽधि॑तम्। हि। ब॒र्हिः। प्री॒णी॒ते। अ॒ग्निः। ई॒ळि॒तः। न। होता॑। आ। मा॒तरा॑। वि॒श्ववा॑रे॒ इति॑ वि॒श्वऽवा॑रे। हु॒वा॒नः। यतः॑। य॒वि॒ष्ठ॒। ज॒ज्ञि॒षे। सु॒ऽशेवः॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:7» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इस जगत् में कौन मनुष्य उत्तम हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यविष्ठ) अतिशय कर युवावस्था को प्राप्त (यतः) जिनसे आप (सुशेवः) सुन्दर सुखयुक्त (जज्ञिषे) होते हो उन (विश्ववारे) सब सुखों के स्वीकार करनेवाले दोनों (मातरा) माता-पिता की (हुवानः) स्तुति करता हुआ (ईळितः) प्रशंसित गुणोंवाला (होता) होमकर्ता (न) जैसे, वैसे (अग्निः) अग्नि के तुल्य (प्राचीनः) पूर्वकाल सम्बन्धी (यज्ञः) सङ्ग करने योग्य पुरुष (सुधितम्) सुन्दर हितकारी (बर्हिः) उत्तम अधिक हविष्य को प्राप्त करने के अर्थ जो (आ, प्रीणीते) अच्छे प्रकार कामना करता है (हि) वही योग्य होता है ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे होमकर्त्ता वेदविहित यज्ञ और उसकी सामग्री की कामना करता है, वैसे ही जो पितृजनों की प्रशंसा करते हुए सेवन करते हैं, वे इस जगत् में कृतज्ञ होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अत्र के मनुष्या उत्तमाः सन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे यविष्ठ ! यतस्त्वं सुशेवो जज्ञिषे तौ विश्ववारे मातरा हुवान ईळितो होतानाग्निरिव प्राचीनो यज्ञः सुधितं बर्हिः प्राप्तुं बर्हिः प्राप्तुं य आ प्रीणीते स हि योग्यो जायते ॥३॥

Word-Meaning: - (प्राचीनः) यः प्रागञ्चति (यज्ञः) सङ्गन्तव्यः (सुधितम्) सुष्ठु हितम् (हि) निश्चये (बर्हिः) उत्तमं प्रवृद्धं हविः (प्रीणीते) कामयते (अग्निः) पावक इव (ईळितः) प्रशंसितगुणः (न) इव (होता) हवनकर्त्ता (आ) (मातरा) जनकौ (विश्ववारे) सर्वसुखवरितारौ (हुवानः) स्तुवन् (यतः) याभ्याम् (यविष्ठ) अतिशयेन यौवनं प्राप्तः (जज्ञिषे) जायसे (सुशेवः) सुसुखः ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा होता वेदविहितं यज्ञं हवींषि च कामयते तथैव ये पितॄन् प्रशंसमानाः सेवन्ते त एवाऽत्र कृतज्ञा जायन्ते ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसा यज्ञ करणारा याज्ञिक वेदविहित यज्ञ व त्याच्या सामग्रीची कामना करतो तसेच जे पितृजनांची प्रशंसा करीत त्यांचा स्वीकार करतात ते या जगात कृतज्ञ असतात. ॥ ३ ॥