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यु॒वोः श्रियं॒ परि॒ योषा॑वृणीत॒ सूरो॑ दुहि॒ता परि॑तक्म्यायाम् । यद्दे॑व॒यन्त॒मव॑थ॒: शची॑भि॒: परि॑ घ्रं॒समो॒मना॑ वां॒ वयो॑ गात् ॥

English Transliteration

yuvoḥ śriyam pari yoṣāvṛṇīta sūro duhitā paritakmyāyām | yad devayantam avathaḥ śacībhiḥ pari ghraṁsam omanā vāṁ vayo gāt ||

Pad Path

यु॒वोः । श्रिय॑म् परि॑ । योषा॑ । अ॒वृ॒णी॒त॒ । सूरः॑ । दु॒हि॒ता । परि॑ऽतक्म्यायाम् । यत् । दे॒व॒ऽयन्त॑म् । अव॑थः । शची॑भिः । परि॑ । घ्रं॒सम् । ओ॒मना॑ । वा॒म् । वयः॑ । गा॒त् ॥ ७.६९.४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:69» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:4


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (युवोः) हे युवावस्था को प्राप्त राजपुरुषो ! (सूरः, दुहिता) शूरवीरों की कन्यायें (परितक्म्यायां) वेदियों के स्वयंवरों में (योषा) स्त्रियें बनकर तुम्हारी (श्रियं) शोभा को (परि, अवृणीत) भले प्रकार बढ़ावें और (यत्) जो तुम (शचीभिः) अपने शुभ कर्मों द्वारा (देवयन्तं) क्षात्रधर्मरूप यज्ञ की (अवथः) रक्षा करते हो, इसलिए (वां) तुमको (घ्रंसं, ओमना, वयः) दीप्तिवाला धनादि ऐश्वर्य्य (परि, गात्) सब ओर से प्राप्त हो ॥४॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे क्षात्रधर्म को प्राप्त राजपुरुषों ! तुम ब्रह्मचर्य्यादि नियमों का पालन करते हुए युवावस्था को प्राप्त होकर इस सर्वोपरि क्षात्रधर्म का पालन करो, जिससे सुरक्षित हुए सब यज्ञ निर्विघ्न समाप्त होते हैं। यदि तुम अपने जीवन से क्षात्रधर्म को उच्च मान कर इसकी भले प्रकार रक्षा करोगे, तो दिव्यगुणसम्पन्न देवियाँ तुम्हें स्वयंवरों में वरेंगीं और तुम्हें धनरूप ऐश्वर्य्य प्राप्त होगा ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (युवोः) हे युवानो राजपुरुषाः ! (सूरः, दुहिता) शौर्ययुक्तानां कुमार्य्यः, (परितक्म्यायाम्) वेद्यां स्वयंवरेषु (योषा) भार्य्या भूत्वा भवतां (श्रियम्) शोभां (परि, अवृणीत) सर्वतो विस्तारयन्तु, अन्यच्च (यत्) यूयं (शचीभिः) स्वकीयशोभनकर्मभिः (देवयन्तम्) क्षात्रधर्मात्मकं यज्ञं (अवथः) रक्षत, अत एव (वाम्) युष्मान् (घ्रंसम्, ओमना, वयः) दीप्तिवद्धनाद्यैश्वर्य्यं (परि, गात्) सर्वतः प्राप्नोतु ॥४॥