Word-Meaning: - (वां, देवया) हे दिव्यशक्तिसम्पन्न राजपुरुषो ! तुम्हारा (अयं) यह (सोमसुत्) चद्रमा के तुल्य सुन्दर यान (यत्) जब (उ) निश्चय करके (अद्रिः, ऊर्ध्वः) पर्वतों से ऊँचा जाकर (विवक्ति) बोलता है, तब हर्षित हुए (वल्गू, विप्रः) बड़े-बड़े विद्वान् पुरुष (आ) सत्कारपूर्वक (युवाभ्यां) तुम दोनों को (हव्यैः) यज्ञों में (ववृतीत) वरण करते हैं ॥४॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे न्यायाधीश तथा सेनाधीश राजपुरुषो ! जब तुम्हारे यान पर्वतों की चोटियों से भी ऊँचे जाकर गरजते और सुन्दरता में चन्द्रमण्डल का भी मानमर्दन करते हैं, तब ऐश्वर्य्य से सम्पन्न तुम लोगों को अपनी रक्षा के लिए बड़े-बड़े विद्वान् अपने यज्ञों में आह्वान करते अर्थात् ऐश्वर्य्यसम्पन्न राजा का सब पण्डित तथा गुणी जन आश्रय लेते हैं और राजा का कर्त्तव्य है कि वह गुणी जनों का यथायोग्य सत्कार करे ॥४॥