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प्र वा॒मन्धां॑सि॒ मद्या॑न्यस्थु॒ररं॑ गन्तं ह॒विषो॑ वी॒तये॑ मे । ति॒रो अ॒र्यो हव॑नानि श्रु॒तं न॑: ॥

English Transliteration

pra vām andhāṁsi madyāny asthur araṁ gantaṁ haviṣo vītaye me | tiro aryo havanāni śrutaṁ naḥ ||

Pad Path

प्र । वा॒म् । अन्धां॑सि । मद्या॑नि । अ॒स्थुः॒ । अर॑म् । ग॒न्त॒म् । ह॒विषः॑ । वी॒तये॑ । मे॒ । ति॒रः । अ॒र्यः । हव॑नानि । श्रु॒तम् । नः॒ ॥ ७.६८.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:68» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे राजपुरुषो ! (नः) हमारे वचनों को (श्रुतं) सुनो; (अर्यः) हमारे शत्रुओं की (हवनानि) शक्तियों को (तिरः) तिरस्कार करके (मे, हविषः) हमारे यज्ञों की (वीतये) प्राप्ति के लिये (गन्तं) आयें, (वां) तुम्हारे (अन्धांसि, मद्यानि) मद करनेवाले राजमद (प्र, अस्थुः, अरं) भले प्रकार दूर हों ॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे राजपुरुषो ! तुम्हारा परम कर्त्तव्य है कि तुम राजपद त्यागकर प्रजा के धार्मिक यज्ञों में सम्मिलित होओ और धार्मिक प्रजा का विरोधी जो शत्रुदल है, उसका सदैव तिरस्कार करते रहो, ताकि यज्ञादि धार्मिक कार्यो में विघ्न न हो, अथवा राजा को चाहिये कि वह मादक पदार्थों के अधीन होकर कोई प्रमाद न करे और अपने राजपद को सर्वथा त्याग कर प्रेमभाव से प्रजा के साथ व्यवहार करे। वेदवेत्ता याज्ञिकों को चाहिये कि वह राजपुरुषों को सदैव यह उपदेश करते रहें ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे राजपुरुषाः ! भवन्तः (नः) अस्मद्वचनानि (श्रुतं) शृण्वन्तु अन्यच्च ये अस्माकं (अर्यः) शत्रवस्तेषां (हवनानि, तिरः) शक्तीस्तिरस्कृत्य (मे, हविषः) मम यज्ञस्य (वीतये) प्राप्त्यर्थम् (गन्तं) आगच्छन्तु (वां) युष्माकं (अन्धांसि, मद्यानि) मदकारकाणि वस्तूनि (अरं) सम्यक्प्रकारेण (प्रास्थुः) दूरीभवन्तु ॥२॥