उ॒त स्व॒राजो॒ अदि॑ति॒रद॑ब्धस्य व्र॒तस्य॒ ये । म॒हो राजा॑न ईशते ॥
English Transliteration
uta svarājo aditir adabdhasya vratasya ye | maho rājāna īśate ||
Pad Path
उ॒त । स्व॒ऽराजः॑ । अदि॑तिः । अद॑ब्धस्य । व्र॒तस्य॑ । ये । म॒हः । राजा॑नः । ई॒श॒ते॒ ॥ ७.६६.६
Rigveda » Mandal:7» Sukta:66» Mantra:6
| Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:1
| Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:6
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (ये) जो (राजानः) राजा लोग (अदब्धस्य, महः, व्रतस्य) अखण्डित महाव्रत को (ईशते) करते हैं, वे (स्वराजः) सब के स्वामी (उत) और (अदितिः) सूर्य्य के समान प्रकाशवाले होते हैं ॥६॥
Connotation: - न्यायपूर्वक प्रजाओं का पालन करना राजाओं का “अखण्डित महाव्रत” है। जो राजा इस व्रत का पालन करता है अर्थात् किसी पक्षपात से न्याय को भङ्ग नहीं करता, वह स्वराज्य=अपनी स्वतन्त्र सत्ता से सदा विराजमान होता है। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है कि “स्वयं राजते इति स्वराट्”=जो स्वतन्त्र सत्ता से विराजमान हो, उसका नाम “स्वराट्” और “स्वयं राजते इति स्वराज:”=जो स्वयं विराजमान हो, उसको “स्वराज” कहते हैं और यह बहुवचन में बनता है। यहाँ “स्वराज” शब्द “राजान:” का विशेषण है। अर्थात् वे ही राजा लोग स्वराज का लाभ करते हैं, जो न्याय-नियम से प्रजापालक होते हैं, अन्य नहीं ॥ कई एक मन्त्रों में “स्वराज” शब्द ईश्वर के लिए भी आता है, क्योंकि वह वास्तव में अपनी सत्ता से विराजमान है और अन्य सब राजा प्रजा किसी न किसी प्रकार से परतन्त्र ही रहते हैं, सर्वथा स्वतन्त्र कदापि नहीं हो सकते ॥ और जहाँ “स्वाराज्य” शब्द आता है, वहाँ यह अर्थ होते हैं कि “स्वर् राज्यं स्वाराज्यं” =जो देवताओं का राज्य हो, वह “स्वाराज्य” कहलाता है। इस पद में “स्वर” तथा “राज” दो शब्द हैं, “स्वर” शब्द के रकार का लोप होकर पूर्वपद को दीर्घ हो जाने से “स्वाराज” बनता और इसी के भाव को “स्वराज्य” कहते हैं, इस प्रकार कहीं “स्वराज्य” और कहीं “स्वराज” ये दोनों शब्द वेदों के अनेक मन्त्रों में आते हैं, जो कहीं ईश्वर के अर्थ देते और कहीं देवताओं के राज्य के अर्थ देते हैं, इनसे भिन्न अर्थ में इनका व्यवहार नहीं देखा जाता ॥ और जो आजकल कई एक लोग परराज्य की अपेक्षा से अपने राज्य के लिए “स्वराज्य” शब्द का व्यवहार करते हैं, वह वेद तथा शास्त्रों में कहीं नहीं पाया जाता, क्योंकि वैदिक सिद्धान्त में जो उत्तम गुणों से सम्पन्न हो, वह देवता और जो उक्त गुणों से रहित हो, उसको असुर कहते हैं, इस परिभाषा के अनुसार जो देवता है, वह अपना और असुर पराया है, यही मर्यादा सदा से चली आई है ॥६॥
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Word-Meaning: - (ये) ये (राजानः) सम्राजः (अदब्धस्य, व्रतस्य, महः) महतो व्रतस्य (स्वराजः) स्वामिनो भवन्ति (उत) अन्यच्च ते (ईशते) ऐश्वर्ययुक्ता भवन्तीत्यर्थः, तथा (अदितिः) सूर्यवत् प्रकाशका भवन्ति ॥६॥