सु॒प्रा॒वीर॑स्तु॒ स क्षय॒: प्र नु याम॑न्त्सुदानवः । ये नो॒ अंहो॑ऽति॒पिप्र॑ति ॥
English Transliteration
suprāvīr astu sa kṣayaḥ pra nu yāman sudānavaḥ | ye no aṁho tipiprati ||
Pad Path
सु॒प्र॒ऽअ॒वीः । अ॒स्तु॒ । सः । क्षयः॑ । प्र । नु । याम॑न् । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । ये । नः॒ । अंहः॑ । अ॒ति॒ऽपिप्र॑ति ॥ ७.६६.५
Rigveda » Mandal:7» Sukta:66» Mantra:5
| Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:8» Mantra:5
| Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:5
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (सुदानवः) हे यजमान लोगों ! तुम्हारे (यामन्) मार्ग (सः) वह परमात्मा (क्षयः) विघ्नरहित करे (नु) और (सुप्रावीः, अस्तु) रक्षायुक्त हो। तुम लोग यह प्रार्थना करो कि (ये) जो (नः) हमारे (अंहः) पाप हैं, उनको आप (अतिपिप्रति) हम से दूर करें ॥५॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि दानी तथा यज्ञशील यजमानों के मार्ग सदा निर्विघ्न होते और उनके पापों का सदैव क्षय होता है। अर्थात् जब वे अपने शुद्ध हृदय द्वारा परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवन् ! आप हमारे पापों का क्षय करें, तब उनको इस कर्म का फल अवश्य शुभ होता है। यद्यपि वैदिक मत में केवल प्रार्थना का फल मनोऽभिलषित पदार्थों की प्राप्ति नहीं हो सकता, तथापि प्रार्थना द्वारा अपने हृदय की न्यूनताओं को अनुभव करने से उद्योग का भाव उत्पन्न होता है, जिसका फल परमात्मा अवश्य देते हैं, या यों कहों कि अपनी न्यूनताओं को पूर्ण करते हुए जो प्रार्थना की जाती है, वह सफल होती है ॥५॥
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ARYAMUNI
Word-Meaning: - (सुदानवः) हे यजमानाः ! भवतां (यामन्) मार्गं (सः) पूर्वोक्तः परमात्मा (क्षयः) विघ्नरहितं करोतु (नु) अपरञ्च स मार्गः (सुप्रावीः) रक्षायुक्तः (अस्तु) भवतु अन्यच्च (ये) यानि (नः) अस्माकं (अंहः) पापानि (अतिपिप्रति) दूरीकरोतु भवानिति शेषः ॥५॥