आ या॑तं मित्रावरुणा जुषा॒णावाहु॑तिं नरा । पा॒तं सोम॑मृतावृधा ॥
English Transliteration
ā yātam mitrāvaruṇā juṣāṇāv āhutiṁ narā | pātaṁ somam ṛtāvṛdhā ||
Pad Path
आ । या॒त॒म् । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । जु॒षा॒णौ । आऽहु॑तिम् । न॒रा॒ । पा॒तम् । सोम॑म् । ऋ॒त॒ऽवृ॒धा॒ ॥ ७.६६.१९
Rigveda » Mandal:7» Sukta:66» Mantra:19
| Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:11» Mantra:4
| Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:19
Reads times
ARYAMUNI
Word-Meaning: - (ऋतावृधा) हे ज्ञानयज्ञ, योगयज्ञ, कर्मयज्ञ आदि यज्ञों के बढ़ानेवाले (मित्रावरुणा, नरा) मित्र वरुण विद्वान् लोगों ! तुम (आ, यातं) सत्कारपूर्वक आओ और हमारी इस शान्ति की (आहुतिं) आहुति को (जुषाणौ) सेवन करते हुए (सोमं, पातं) पवित्र सोम का पान करो ॥१९॥
Connotation: - परमात्मा आज्ञा देते हैं कि हे ज्ञानादि यज्ञों के अनुष्ठानी विद्वानों ! तुम लोग सत्कारपूर्वक अपने यजमानों को प्राप्त होओ और सोमपान करते हुए उनके हृदय को शान्तिधाम बनाओ अर्थात् अपने अनुष्ठानरूप ज्ञान से उनको ज्ञानयज्ञ, योगयज्ञ, तथा कर्मयज्ञादि वैदिक कर्मों का अनुष्ठानी बनाकर पवित्र करो और शान्ति की आहुति देते हुए संसार भर में शान्ति फैलाओ, जो तुम्हारा कर्त्तव्य है ॥१९॥११॥ यह ६६ वाँ सूक्त और ११ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
Reads times
ARYAMUNI
Word-Meaning: - (ऋतावृधा) हे ज्ञानयज्ञयोगयज्ञकर्मयज्ञादियज्ञानां वर्द्धयितारो मित्रावरुणौ, (नरा) नरौ ! युवाम् (आ, यातं) आगच्छतं (आहुतिम्) मम सत्कारम् (जुषाणौ) अभिलष्यन्तौ (सोमम्, पातं) सोमं पिबतमित्यर्थः, अत्रापि द्विवचनं ज्ञानविज्ञानशक्तिद्वयसूचनार्थम् ॥१९॥ इति षट्षष्टितमं सूक्तम् एकादशो वर्गश्च समाप्तः ॥