अब यज्ञ में सोमादि सात्त्विक पदार्थों द्वारा देव=विद्वानों का सत्कार कथन करते हैं।
Word-Meaning: - (वरुण) हे सर्वपूज्य (मित्रः) सर्वप्रिय (अदाभ्या) संयमी (च) तथा (दयुमत्) तेजस्वी विद्वानों ! आप लोग (सोमपीतये) सोमपान करने के लिये (काव्येभिः) यानों द्वारा (आ, यातं) भले प्रकार आयें ॥१७॥
Connotation: - इस मन्त्र में परमात्मा ने शिष्टाचार का उपदेश किया है कि हे प्रजाजनों ! तुम सर्वपूज्य, विद्वान्, जितेन्द्रिय तथा वेदोक्त कर्मकर्त्ता विद्वानों को सुशोभित यानों द्वारा सत्कारपूर्वक अपने घर वा यज्ञमण्डप में बुलाओ और सोमादि उत्तमोत्तम पेय तथा खाद्य पदार्थों द्वारा उनका सत्कार करते हुए उनसे सदुपदेश श्रवण करो ॥ यहाँ यह भी ज्ञात रहे कि “सोम” के अर्थ चित्त को आह्लादित करने तथा सात्त्विक स्वभाव बनानेवाले रस के हैं, किसी मादक द्रव्य के नहीं, क्योंकि वेदवेत्ता विद्वान् लोग जो सूक्ष्म बुद्धि द्वारा उस परमात्मा को प्राप्त होने का यत्न करते हैं, वे मादक द्रव्यों का कदापि सेवन नहीं करते, क्योंकि सब मादक द्रव्य बुद्धिनाशक होते हैं और सोम के मादक द्रव्य न होने में एक बड़ा प्रमाण यह है कि “ऋत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्” ८।२।१२॥ इस मन्त्र में “न सुरायां” पद दिया है, जिसका अर्थ यह है कि सोम सुरा के समान मादक द्रव्य नहीं, इससे सिद्ध है कि बुद्धिवर्धक सात्त्विक पदार्थ का नाम सोम है ॥१७॥