Go To Mantra

उदु॒ त्यद्द॑र्श॒तं वपु॑र्दि॒व ए॑ति प्रतिह्व॒रे । यदी॑मा॒शुर्वह॑ति दे॒व एत॑शो॒ विश्व॑स्मै॒ चक्ष॑से॒ अर॑म् ॥

English Transliteration

ud u tyad darśataṁ vapur diva eti pratihvare | yad īm āśur vahati deva etaśo viśvasmai cakṣase aram ||

Pad Path

उत् । ऊँ॒ इति॑ । त्यत् । द॒र्श॒तम् । वपुः॑ । दि॒वः । ए॒ति॒ । प्र॒ति॒ऽह्व॒रे । यत् । ई॒म् । आ॒शुः । वह॑ति । दे॒वः । एत॑शः । विश्व॑स्मै । चक्ष॑से । अर॑म् ॥ ७.६६.१४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:66» Mantra:14 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:14


Reads times

ARYAMUNI

अब उपर्युक्त विद्वानों के सत्सङ्ग से शुद्ध हुए अन्त:करण द्वारा परमात्मा की प्राप्ति कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (त्यत्, दर्शतं, वपुः, उत्) उस अमृत पुरुष का दर्शनीय स्वरूप (यत्) जो (दिवः, प्रतिह्वरे) प्रकाशमान अन्त:करण में (एति) प्रकाशित होता है, उस (विश्वस्मै, चक्षसे) सम्पूर्ण संसार के द्रष्टा (देवः) देव को (एतशः, यत्, ईम्) ये गमनशील अन्त:करण की वृत्तियें (आशुः, वहति) शीघ्र ही प्राप्त कराने में (अरं) समर्थ होती हैं। मन्त्र में “उ” पादपूर्ति के लिए है ॥१४॥
Connotation: - इस मन्त्र में यह उपदेश किया है कि अनृत से द्वेष तथा सत्य से प्यार करनेवाले सत्पुरुषों के सत्सङ्ग से शुद्धान्त:करणपुरुष उस परमात्मदेव को प्राप्त करते हैं। अर्थात् उनके अन्त:करण की वृत्तियाँ उस सर्वद्रष्टा देव को प्राप्त करने के लिए शीघ्र ही समर्थ होती हैं और उन्हीं के द्वारा वह देव प्रकाशित होता है, मलिनान्त:करण पुरुष उनको प्राप्त करने में सर्वथा असमर्थ होते हैं, इसलिए हे सांसारिक जनों ! तुम सत्सङ्ग द्वारा उस अमृतस्वरूप को प्राप्त करो, जो तुम्हारा एकमात्र आधार है ॥१४॥
Reads times

ARYAMUNI

अथ विद्वत्संसर्गेण शुद्धान्तःकरणानां परमात्मप्राप्तिः कथ्यते।

Word-Meaning: - (त्यत्, दर्शतं, वपुः) पूर्वोक्तं ब्रह्मणः स्वरूपं (दिवः, प्रतिह्वरे) प्रकाशमानान्तःकरणे (एति) प्रकाशितं भवति। (विश्वस्मै, चक्षसे) तस्मै सर्वद्रष्टे (देवः) परमात्मने (एतशः) गमनशीलाः (यदीं) याः चित्तवृत्तयः (आशुः) शीघ्रं यथा तथा (वहति) जीवात्मानं प्राप्नुवन्ति ताः (अरं) अलं भवन्ति ॥१४॥