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ब॒हव॒: सूर॑चक्षसोऽग्निजि॒ह्वा ऋ॑ता॒वृध॑: । त्रीणि॒ ये ये॒मुर्वि॒दथा॑नि धी॒तिभि॒र्विश्वा॑नि॒ परि॑भूतिभिः ॥

English Transliteration

bahavaḥ sūracakṣaso gnijihvā ṛtāvṛdhaḥ | trīṇi ye yemur vidathāni dhītibhir viśvāni paribhūtibhiḥ ||

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Pad Path

ब॒हवः॑ । सूर॑ऽचक्षसः । अ॒ग्नि॒ऽजि॒ह्वाः । ऋ॑ऋ॒त॒ऽवृधः॑ । त्रीणि॑ । ये । ये॒मुः । वि॒दथा॑नि । धी॒तिऽभिः । विश्वा॑नि । परि॑भूतिऽभिः ॥ ७.६६.१०

Rigveda » Mandal:7» Sukta:66» Mantra:10 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:10


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सूरचक्षसः) सूर्य्यसदृश प्रकाशवाले (अग्निजिह्वाः) अग्निसमान वाणीवाले (ऋतावृधः) सत्यरूप यज्ञ के बढ़ानेवाले (ये) जो (परिभूतिभिः, धीतिभिः) शुभ कर्मों द्वारा (विदथानि) कर्मभूमि को बढ़ाते हैं, वे (त्रीणि) कर्म, उपासना तथा ज्ञान को प्राप्त हुए (बहवः) अनेक विद्वान् (विश्वानि) सम्पूर्ण फलों को (येमुः) प्राप्त होते हैं ॥१०॥
Connotation: - जो विद्वान् पुरुष अपने शुभकर्मों द्वारा कर्मक्षेत्र को विस्तृत करते हैं, वे ही सब प्रकार के फलों को प्राप्त होते और कर्म, उपासना तथा ज्ञान द्वारा मनुष्य जन्म के धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षरूप फलचतुष्टय को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार के विद्वान् सूर्य्यसमान प्रकाश को लाभ करते हैं और अग्नि के सदृश उनकी वाणी असत्यरूप समिधाओं को जलाकर सदैव सत्यरूपी यज्ञ करती है। अर्थात् सत्कर्मी, अनुष्ठानी तथा विज्ञानी विद्वानों का ही काम है कि वे परस्पर मिलकर कर्मभूमि को विस्तृत करें, या यों कहो कि कर्मयोग के क्षेत्र में कटिबद्ध हों ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सूरचक्षसः) सूर्यसदृशप्रकाशमानाः (अग्निजिह्वाः) अग्निसदृशतेजस्विगिरावन्तः (ऋतावृधः) सत्यरूपयज्ञस्य वर्द्धकाः (ये) ये जनाः (परिभूतिभिः, धीतिभिः) सत्कर्मभिः (विदथानि) कर्मस्थानानि वर्द्धयन्ति ते (त्रीणि) कर्मोपासनाज्ञानानि (येमुः) प्राप्नुवन्ति एवं कृत्वा (बहवः) महान्तः (विश्वानि) सम्पूर्णफलानि प्राप्नुवन्तीत्यर्थः ॥१०॥