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ए॒ष स्तोमो॑ वरुण मित्र॒ तुभ्यं॒ सोम॑: शु॒क्रो न वा॒यवे॑ऽयामि । अ॒वि॒ष्टं धियो॑ जिगृ॒तं पुरं॑धीर्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

English Transliteration

eṣa stomo varuṇa mitra tubhyaṁ somaḥ śukro na vāyave yāmi | aviṣṭaṁ dhiyo jigṛtam puraṁdhīr yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

ए॒षः । स्तोमः॑ । व॒रु॒ण॒ । मि॒त्र॒ । तुभ्य॑म् । सोमः॑ । शु॒क्रः । न । वा॒यवे॑ । अ॒या॒मि॒ । अ॒वि॒ष्टम् । धियः॑ । जि॒गृ॒तम् । पुर॑म्ऽधीः । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥ ७.६५.५

Rigveda » Mandal:7» Sukta:65» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:5


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वरुण, मित्र) हे वरणीय सथा सबके प्रियतम परमात्मन् ! (एषः, स्तोमः) यह विज्ञानमय यज्ञ (तुभ्यं) तुम्हारे निमित्त (अयामि) किया गया है, आप हमें (सोमः) सौम्यस्वभाव (शुक्रः) बल (वायवे, न) आदित्य के समान प्रकाश (अयामि) प्रदान करें, यह यज्ञ (धियः, अविष्टं) बुद्धि की रक्षा (जिगृतं) जागृति (पुरन्धीः) स्तुत्यर्थ है (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) कल्याणकारक पदार्थों के प्रदान द्वारा (नः) हमको (सदा) सदा (पात) पवित्र करें ॥५॥
Connotation: - इस विज्ञानमय यज्ञ में स्नेह तथा आकर्षणरूपशक्तिप्रधान परमात्मा से यह प्रार्थना की गयी है कि हे भगवन् ! आप हमें सौम्यस्वभाव, बलिष्ठ तथा आदित्य के समान तेजस्वी बनायें और हमारी बुद्धि की सब ओर से रक्षा करें, ताकि हम सदा प्रबुद्ध और अपने उद्योगों में तत्पर रहें, आपसे यही प्रार्थना है कि आप सदैव हम पर कृपा करते रहें ॥५॥ ६५ वाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ।
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वरुण, मित्र) हे वरणीय तथा सर्वप्रियतम परमात्मन् ! (एषः, स्तोमः) इमं विज्ञानयज्ञं (तुभ्यम्) भवदर्थं (अयामि) समर्पयामि भवान् मह्यं (सोमः) सौम्यस्वभावं (शुक्रः) बलं प्रयच्छतु अन्यच्च (वायवे, न) आदित्यवत् प्रकाशम्प्रार्थयामि अस्माकं (धियः) कर्म्माणि (अविष्टं) रक्षतु अस्माकं (पुरन्धीः) स्तुतीः (जिगृतं) स्वीकरोतु (यूयं) भवान् (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनवचोभिः (नः) अस्मान्प्रति (सदा) सदैव (पात) रक्षतु ॥ यूयं पात इत्यादि बहुवचनमादरार्थम्, ईश्वरे बहुत्वाभावात्, अर्थात् ईश्वरे नानात्वं नास्ति अतो बहुवचनमपि एकत्वसूचकमित्यर्थः ॥५॥ पञ्चषष्टितमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥