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यो वां॒ गर्तं॒ मन॑सा॒ तक्ष॑दे॒तमू॒र्ध्वां धी॒तिं कृ॒णव॑द्धा॒रय॑च्च । उ॒क्षेथां॑ मित्रावरुणा घृ॒तेन॒ ता रा॑जाना सुक्षि॒तीस्त॑र्पयेथाम् ॥

English Transliteration

yo vāṁ gartam manasā takṣad etam ūrdhvāṁ dhītiṁ kṛṇavad dhārayac ca | ukṣethām mitrāvaruṇā ghṛtena tā rājānā sukṣitīs tarpayethām ||

Pad Path

यः । वा॒म् । गर्त॑म् । मन॑सा । तक्ष॑त् । ए॒तम् । ऊ॒र्ध्वाम् । धी॒तिम् । कृ॒णव॑त् । धा॒रय॑त् । च॒ । उ॒क्षेथा॑म् । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । घृ॒तेन॑ । ता । रा॒जा॒ना॒ । सु॒ऽक्षि॒तीः । त॒र्प॒ये॒था॒म् ॥ ७.६४.४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:64» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:4


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) जो (राजाना) राजा लोग (मित्रावरुणा) अध्यापक तथा उपदेशकों को (घृतेन) स्नेह से (उक्षेथां) सिञ्चन करते हैं, (ताः) वे (सुक्षितीः) सम्पूर्ण प्रजा को (तर्पयेथां) तृप्त करते हैं (च) और जो (वां) अध्यापक तथा उपदेशकों के (गर्तं) गूढाशयों का (मनसा) मन से (तक्षत्) विचार कर (एवं) उन (ऊर्ध्वां, धीतिम्) उन्नत कर्मों को (धारयत्) धारण करके (कृणवत्) करते हैं, वे सदैव उत्रत होते हैं ॥४॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो राजा लोग अपनी प्रजा में विद्या तथा धार्मिक भावों के प्रचारार्थ अध्यापक और बड़े-बड़े विद्वान् धार्मिक उपदेशकों का अपने स्नेह से पालन-पोषण करते हैं, वे अपनी प्रजा को उन्नत करते हैं और जो प्रजाजन उन महात्माओं के उपदेशों को मन से विचार कर अनुष्ठान करते हैं, वे कभी अवनति को प्राप्त नहीं होते, प्रत्युत सद उन्नति की ओर जाते हैं ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (यः) ये राजानः (मित्रावरुणा) अध्यापकोपदेशकयोः (घृतेन) स्नेहेन (उक्षेथां) सिञ्चन्ति (ता) ते (सुक्षितीः) सम्पूर्णप्राणिनः (तर्पयेथाम्) तर्पयन्ति, अपरं च ये (वां) अध्यापकोपदेशकयोः (गर्तं) गूढाशयं (मनसा) चित्तवृत्त्या (तक्षत्) विचारयन्ति ते (एतं) पूर्वोक्तम् (ऊर्ध्वां, धीतिम्) उन्नतकर्मरक्षां (धारयत्) धारणं कृत्वा (कृणवत्) कुर्वन्ति ते सदैव उन्नतिपथं प्राप्नुवन्ति ॥४॥