स॒स्वश्चि॒द्धि समृ॑तिस्त्वे॒ष्ये॑षामपी॒च्ये॑न॒ सह॑सा॒ सह॑न्ते। यु॒ष्मद्भि॒या वृ॑षणो॒ रेज॑माना॒ दक्ष॑स्य चिन्महि॒ना मृ॒ळता॑ नः ॥१०॥
sasvaś cid dhi samṛtis tveṣy eṣām apīcyena sahasā sahante | yuṣmad bhiyā vṛṣaṇo rejamānā dakṣasya cin mahinā mṛḻatā naḥ ||
स॒स्वरिति॑। चि॒त्। हि। सम्ऽऋ॑तिः। त्वे॒षी। ए॒षा॒म्। अ॒पी॒च्ये॑न। सह॑सा। सह॑न्ते। यु॒ष्मत्। भि॒या। वृ॒ष॒णः॒। रेज॑मानाः। दक्ष॑स्य। चि॒त्। म॒हि॒ना। मृ॒ळत॑। नः॒ ॥१०॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वे विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्ते विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥
ये हि सस्वश्चिदेषां त्वेषी समृतिरस्त्यपीच्येन सहसा सहन्ते तेभ्यो युष्मद्भिया रेजमाना वृषणो रेजमाना भवन्ति ते यूयं दक्षस्य महिना चिन्नो मृळत ॥१०॥
MATA SAVITA JOSHI
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