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त्र्य॑म्बकं यजामहे सु॒गन्धिं॑ पुष्टि॒वर्ध॑नम्। उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बन्ध॑नान्मृ॒त्योर्मु॑क्षीय॒ मामृता॑त् ॥१२॥

English Transliteration

tryambakaṁ yajāmahe sugandhim puṣṭivardhanam | urvārukam iva bandhanān mṛtyor mukṣīya māmṛtāt ||

Pad Path

त्र्य॑म्बकम्। य॒जा॒म॒हे॒। सु॒गन्धि॑म्। पु॒ष्टि॒ऽवर्ध॑नम्। उ॒र्वा॒रु॒कम्ऽइ॑व। बन्ध॑नात्। मृ॒त्योः। मु॒क्षी॒य॒। मा। अ॒मृता॑त् ॥१२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:59» Mantra:12 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:30» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किसकी उपासना करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जिस (सुगन्धिम्) अच्छे प्रकार पुण्यरूपय यशयुक्त (पुष्टिवर्धनम्) पुष्टि बढ़ानेवाले (त्र्यम्बकम्) तीनों कालों में रक्षण करने वा तीन अर्थात् जीव, कारण और कार्य्यों की रक्षा करनेवाले परमेश्वर को हम लोग (यजामहे) उत्तम प्रकार प्राप्त होवें उसकी आप लोग भी उपासना करिये और जैसे मैं (बन्धनात्) बन्धन से (उर्वारुकमिव) ककड़ी के फल के सदृश (मृत्योः) मरण से (मुक्षीय) छूटूँ, वैसे आप लोग भी छूटिये जैसे मैं मुक्ति से न छूटूँ, वैसे आप भी (अमृतात्) मुक्ति की प्राप्ति से विरक्त (मा, आ) मत हूजिये ॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! हम सब लोगों का उपास्य जगदीश्वर ही है, जिसकी उपासना से पुष्टि, वृद्धि, उत्तम यश और मोक्ष प्राप्त होता है, मृत्यु सम्बन्धि भय नष्ट होता है, उस का त्याग कर के अन्य की उपासना हम लोग कभी न करें ॥१२॥ इस सूक्त में वायु के दृष्टान्त से विद्वान् और ईश्वर के गुण और कृत्य के वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ऋग्वेद में पाँचवे अष्टक में चौथा अध्याय तीसवाँ वर्ग तथा सप्तम मण्डल में उनसठवाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः क उपासनीय इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं त्र्यम्बकं वयं यजामहे तं यूयमपि यजध्वं यथाऽहं बन्धनादुर्वारुकमिव मृत्योर्मुक्षीय तथा यूयं मुच्यध्वं यथाऽहममृतादा मा मुक्षीय तथा यूयमपि मुक्तिप्राप्तेर्विरक्ता मा भवत ॥१२॥

Word-Meaning: - (त्र्यम्बकम्) त्रिष्वम्बकं रक्षणं यस्य रुद्रस्य परमेश्वरस्य यद्वा त्रयाणां जीवकारणकार्याणां रक्षकस्तं परमेश्वरम् (यजामहे) सङ्गच्छेमहि (सुगन्धिम्) सुविस्तृतपुण्यकीर्तिम् (पुष्टिवर्धनम्) यः पुष्टिं वर्धयति तम् (उर्वारुकमिव) यथोर्वारुकफलम् (बन्धनात्) (मृत्योः) मरणात् (मुक्षीय) मुक्तो भवेयम् (मा) निषेधे (आ) मर्यादाम् (अमृतात्) मोक्षप्राप्तेः ॥१२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! अस्माकं सर्वेषां जगदीश्वर एवोपास्योऽस्ति यस्योपासनात् पुष्टिर्वृद्धिः शुद्धकीर्तिर्मोक्षश्च प्राप्नोति मृत्युभयं नश्यति तं विहायान्यस्योपासनां वयं कदापि न कुर्यामेति ॥१२॥ अत्र वायुदृष्टान्तेन विद्वदीश्वरगुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यृग्वेदे पञ्चमाष्टके चतुर्थोऽध्यायस्त्रिंशो वर्गः सप्तमे मण्डले एकोनषष्टितमं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! आम्हा सर्व लोकांचे उपास्य जगदीश्वरच आहे. ज्याच्या उपासनेने पुष्टी, वृद्धी, उत्तम यश व मोक्ष प्राप्त होतो. मृत्यूसंबंधी भय नष्ट होते. त्याचा त्याग करून इतराची उपासना करू नये. ॥ १२ ॥