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ताँ आ रु॒द्रस्य॑ मी॒ळ्हुषो॑ विवासे कु॒विन्नंस॑न्ते म॒रुतः॒ पुन॑र्नः। यत्स॒स्वर्ता॑ जिहीळि॒रे यदा॒विरव॒ तदेन॑ ईमहे तु॒राणा॑म् ॥५॥

English Transliteration

tām̐ ā rudrasya mīḻhuṣo vivāse kuvin naṁsante marutaḥ punar naḥ | yat sasvartā jihīḻire yad āvir ava tad ena īmahe turāṇām ||

Pad Path

तान्। आ। रु॒द्रस्य॑। मी॒ळ्हुषः॑। वि॒वा॒से॒। कु॒वित्। नंस॑न्ते। म॒रुतः॑। पुनः॑। नः॒। यत्। स॒स्वर्ता॑। जि॒ही॒ळि॒रे। यत्। आ॒विः। अव॑। तत्। एनः॑। ई॒म॒हे॒। तु॒राणा॑म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:58» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:28» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन मनुष्य सत्कार करने योग्य और तिरस्कार करने योग्य होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो मनुष्य (यत्) जिस (सस्वर्ता) तपानेवाले शब्द से (नः) हम लोगों को (जिहीळिरे) क्रुद्धित करावें उन (तुराणाम्) शीघ्र कार्य्य करनेवालों का (यत्) जो (एनः) पाप अपराध (तत्) उस को (अव) विरोध में (ईमहे) दूर करें उनको (रुद्रस्य) प्राण के सदृश विद्वान् (मीळ्हुषः) सींचनेवाले विद्वान् के सम्बन्ध में (नंसन्ते) नम्र होते हैं (पुनः) फिर (तान्) उनको (रुद्रस्य) प्राण के सदृश विद्वान् के (कुवित्) बड़ा करते हुए को मैं (आविः) प्रकटता में (आ) सब प्रकार से (विवासे) बसाता हूँ ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो पापी जन धार्मिक जनों के अनादर करनेवाले होवें, उनको दूर वसाना चाहिये और जो नम्रता आदि से युक्त धार्म्मिक होवें, उन को समीप बसावें, जिससे सब का श्रेष्ठ यश प्रकट होवे ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के मनुष्याः सत्करणीयास्तिरस्करणीयाश्च भवन्तीत्याह ॥

Anvay:

ये मनुष्या यत्सस्वर्ता नो जिहीळिरे तेषां तुराणां यदेनस्तदवेमहे तान् रुद्रस्य मीळ्हुषो नंसन्ते पुनस्तान् रुद्रस्य कुवित् कुर्वतोऽहमाविराविवासे ॥५॥

Word-Meaning: - (तान्) (आ) समन्तात् (रुद्रस्य) प्राणस्येव विदुषः (मीळ्हुषः) सेचकस्य (विवासे) वासयामि (कुवित्) महत् (नंसन्ते) नमन्ति (मरुतः) मनुष्याः (पुनः) (नः) अस्मान् (यत्) येन (सस्वर्ता) उपतापकेन शब्देन (जिहीळिरे) क्रोधयेयुः (यत्) (आविः) प्राकट्ये (अव) विरोधे (तत्) (एनः) पापमपराधम् (ईमहे) दूरीकुर्महे (तुराणाम्) क्षिप्रं कारिणाम् ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये पापिनो धार्मिकाणामनादरकर्तारः स्युस्ते दूरे निवासनीया ये च नम्रत्वादिगुणयुक्ता धार्मिकाः स्युस्तान्निकटे निवासयेयुर्यतः सर्वेषां सत्कीर्तिः प्रकटा स्यात् ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे पापी लोक धार्मिक लोकांचा अनादर करतात त्यांना दूर ठेवावे व जे नम्रतेने युक्त धार्मिक असतात त्यांना समीप ठेवावे. ज्यामुळे सर्वांना श्रेष्ठ यश मिळावे. ॥ ५ ॥