ताँ आ रु॒द्रस्य॑ मी॒ळ्हुषो॑ विवासे कु॒विन्नंस॑न्ते म॒रुतः॒ पुन॑र्नः। यत्स॒स्वर्ता॑ जिहीळि॒रे यदा॒विरव॒ तदेन॑ ईमहे तु॒राणा॑म् ॥५॥
tām̐ ā rudrasya mīḻhuṣo vivāse kuvin naṁsante marutaḥ punar naḥ | yat sasvartā jihīḻire yad āvir ava tad ena īmahe turāṇām ||
तान्। आ। रु॒द्रस्य॑। मी॒ळ्हुषः॑। वि॒वा॒से॒। कु॒वित्। नंस॑न्ते। म॒रुतः॑। पुनः॑। नः॒। यत्। स॒स्वर्ता॑। जि॒ही॒ळि॒रे। यत्। आ॒विः। अव॑। तत्। एनः॑। ई॒म॒हे॒। तु॒राणा॑म् ॥५॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर कौन मनुष्य सत्कार करने योग्य और तिरस्कार करने योग्य होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः के मनुष्याः सत्करणीयास्तिरस्करणीयाश्च भवन्तीत्याह ॥
ये मनुष्या यत्सस्वर्ता नो जिहीळिरे तेषां तुराणां यदेनस्तदवेमहे तान् रुद्रस्य मीळ्हुषो नंसन्ते पुनस्तान् रुद्रस्य कुवित् कुर्वतोऽहमाविराविवासे ॥५॥
MATA SAVITA JOSHI
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