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प्र सा॑क॒मुक्षे॑ अर्चता ग॒णाय॒ यो दैव्य॑स्य॒ धाम्न॒स्तुवि॑ष्मान्। उ॒त क्षो॑दन्ति॒ रोद॑सी महि॒त्वा नक्ष॑न्ते॒ नाकं॒ निर्ऋ॑तेरवं॒शात् ॥१॥

English Transliteration

pra sākamukṣe arcatā gaṇāya yo daivyasya dhāmnas tuviṣmān | uta kṣodanti rodasī mahitvā nakṣante nākaṁ nirṛter avaṁśāt ||

Pad Path

प्र। सा॒क॒म्ऽउक्षे॑। अ॒र्च॒त॒। ग॒णाय॑। यः। दैव्य॑स्य। धाम्नः॑। तुवि॑ष्मान्। उ॒त। क्षो॒द॒न्ति॒। रोद॑सी॒ इति॑। म॒हि॒ऽत्वा। नक्ष॑न्ते। नाक॑म्। निःऽऋ॑तेः। अ॒वं॒शात् ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:58» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:28» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छः ऋचावाले अट्ठावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (यः) जो (तुविष्मान्) बहुत बल से युक्त (दैव्यस्य) देवताओं से किये गये (धाम्नः) नाम, स्थान और जन्म का जाननेवाला है उस (साकमुक्षे) साथ ही सुख से सम्बन्ध करनेवाले (गणाय) गणनीय विद्वान् के लिये आप लोग (प्र, अर्चत) सत्कार करिये और (अपि) भी जो पवन (महित्वा) महत्त्व से (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी को (नक्षन्ते) व्याप्त होते हैं, अवयवों के सहितों को (उत) भी (क्षोदन्ति) पीसते हैं (निर्ऋतेः) भूमि से (अवंशात्) सन्तान भिन्न से (नाकम्) दुःख से रहित स्थान को व्याप्त होते हैं, उनको जाननेवाले विद्वानों को आप लोग भी सत्कार कीजिये ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो वायु आदि की विद्या को जानते हैं, उनका नित्य सत्कार करके इनसे वायु की विद्या को प्राप्त होकर आप लोग श्रेष्ठ हूजिये ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

यस्तुविष्मान् दैव्यस्य धाम्नो ज्ञातास्ति तस्मै साकमुक्षे गणाय विदुषे यूयं प्रार्चत अपि ये वायवो महित्वा रोदसी नक्षन्ते सावयवानुत क्षोदन्ति निर्ऋतेरवंशान्नाकं व्याप्नुवन्ति तद्विदो विदुषो यूयमुत प्रार्चत ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) (साकमुक्षे) यः साकं सहोक्षति सुखेन सचति सम्बध्नाति तस्मै (अर्चता) सत्कुरुत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गणाय) गणनीयाय (यः) (दैव्यस्य) देवैः कृतस्य (धाम्नः) नामस्थानजन्मनः (तुविष्मान्) बहुबलयुक्तः (उत) अपि (क्षोदन्ति) संपिंशन्ति (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (महित्वा) महत्त्वेन (नक्षन्ते) प्राप्नुवन्ति (नाकम्) अविद्यमानदुःखम् (निर्ऋतेः) भूमेः (अवंशात्) असन्तानात् ॥१॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये वायुविद्यां जानन्ति तान् नित्यं सत्कृत्यैतेभ्यो वायुविद्यां प्राप्य भवन्तो महान्तो भवत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वायू व विद्वानांचे गुणवर्णन केलेले असल्यामुळे या सूक्तार्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो ! जे वायुविद्या जाणतात त्यांचा नित्य सत्कार करून त्यांच्याकडून वायुविद्या प्राप्त करून तुम्ही श्रेष्ठ व्हा. ॥ १ ॥