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आ स्तु॒तासो॑ मरुतो॒ विश्व॑ ऊ॒ती अच्छा॑ सू॒रीन्स॒र्वता॑ता जिगात। ये न॒स्त्मना॑ श॒तिनो॑ व॒र्धय॑न्ति यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥७॥

English Transliteration

ā stutāso maruto viśva ūtī acchā sūrīn sarvatātā jigāta | ye nas tmanā śatino vardhayanti yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

आ। स्तु॒तासः॑। म॒रु॒तः॒। विश्वे॑। ऊ॒ती। अच्छ॑। सू॒रीन्। स॒र्वऽता॑ता। जि॒गा॒त॒। ये। नः॒। त्मना॑। श॒तिनः॑। व॒र्धय॑न्ति। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:57» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:27» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन प्रशंसा करने और आदर करने योग्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् मनुष्यो ! (ये) जो (विश्वे) सम्पूर्ण (स्तुतासः) प्रशंसा को प्राप्त हुए (शतिनः) असंख्य बलवाले (मरुतः) पवनों के समान विद्या से व्याप्त मनुष्य (त्मना) आत्मा से (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (नः) हम लोगों को (वर्धयन्ति) बढ़ाते हैं उन (सूरीन्) धार्मिक विद्वानों को (सर्वताता) सब के सुख करनेवाले यज्ञ में (यूयम्) आप लोग (अच्छ) अच्छे प्रकार (आ, जिगात) प्रशंसा कीजिये और (स्वस्तिभिः) कल्याणों से (नः) हम लोगों की (सदा) सब काल में (पात) रक्षा कीजिये ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो विद्वान् धर्म्मयुक्त कर्म्म करनेवाले असंख्य विद्या से युक्त, दयालु, न्यायकारी, यथार्थवक्ता जन हम सबों की निरन्तर वृद्धि करें, वृद्धि करके सदा रक्षा करते हैं, उनको ही हम लोग प्रशंसित करके सेवा करें ॥७॥ इस सूक्त में पवन के सदृश विद्वान् के गुणों और कृत्य का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की सङ्गति इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ जाननी चाहिये ॥ यह सत्तावनवाँ सूक्त और सत्ताईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के प्रशंसनीया माननीया भवन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! ये विश्वे स्तुतासः शतिनो मरुतो त्मनोती नोऽस्मान् वर्धयन्ति तान् सूरीन् सर्वताता यूयमच्छा जिगात स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥७॥

Word-Meaning: - (आ) (स्तुतासः) प्राप्तप्रशंसाः (मरुतः) वायव इव व्याप्तविद्या मनुष्याः (विश्वे) सर्वे (ऊती) (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सूरीन्) धार्मिकान् विदुषः (सर्वताता) सर्वेषां सुखकरे यज्ञे (जिगात) प्रशंसत (ये) (नः) अस्मान् (त्मना) आत्मना (शतिनः) शतमसंख्यातं बलं येषामस्ति ते (वर्धयन्ति) (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) ॥७॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये विद्वांसो धर्म्यकर्माणो असंख्यविद्या दयालवो न्यायकारिण आप्ता अस्मान् सर्वान् सततं वर्धयेयुर्वर्धयित्वा सदा रक्षन्ति वयं तानेव प्रशंसितान् कृत्वा सेवेमहीति ॥७॥ अत्र मरुद्वद्विद्वद्गुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तपञ्चाशत्तमं सूक्तं सप्तविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जे विद्वान धर्मकर्म करणारे, अनेक विद्यायुक्त दयाळू, न्यायी, यथार्थ वक्ते असून आमच्या सर्वांची निरंतर वृद्धी करतात, वृद्धी करून सदैव रक्षण करतात त्यांचीच आम्ही प्रशंसा करून सेवा करावी. ॥ ७ ॥