उ॒त स्तु॒तासो॑ म॒रुतो॑ व्यन्तु॒ विश्वे॑भि॒र्नाम॑भि॒र्नरो॑ ह॒वींषि॑। ददा॑त नो अ॒मृत॑स्य प्र॒जायै॑ जिगृ॒त रा॒यः सू॒नृता॑ म॒घानि॑ ॥६॥
uta stutāso maruto vyantu viśvebhir nāmabhir naro havīṁṣi | dadāta no amṛtasya prajāyai jigṛta rāyaḥ sūnṛtā maghāni ||
उ॒त। स्तु॒तासः॑। म॒रुतः॑। व्य॒न्तु॒। विश्वे॑भिः। नाम॑ऽभिः। नरः॑। ह॒वींषि॑। ददा॑त। नः॒। अ॒मृत॑स्य। प्र॒ऽजायै॑। जि॒गृ॒त। रा॒यः। सू॒नृता॑। म॒घानि॑ ॥६॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्या क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥
हे मरुतो नरो ! यूयं विश्वेभिर्नामभिर्नो हवींषि ददात उत स्तुतासो हवींषि व्यन्तु नोऽस्माकममृतस्य प्रजायै रायस्सूनृता मघानि च जिगृत ॥६॥
MATA SAVITA JOSHI
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