ऋध॒क्सा वो॑ मरुतो दि॒द्युद॑स्तु॒ यद्व॒ आगः॑ पुरु॒षता॒ करा॑म। मा व॒स्तस्या॒मपि॑ भूमा यजत्रा अ॒स्मे वो॑ अस्तु सुम॒तिश्चनि॑ष्ठा ॥४॥
ṛdhak sā vo maruto didyud astu yad va āgaḥ puruṣatā karāma | mā vas tasyām api bhūmā yajatrā asme vo astu sumatiś caniṣṭhā ||
ऋध॑क्। सा। वः॒। म॒रु॒तः॒। दि॒द्युत्। अ॒स्तु॒। यत्। वः॒। आगः॑। पु॒रु॒षता॑। करा॑म। मा। वः॒। तस्या॑म्। अपि॑। भू॒म॒। य॒ज॒त्राः॒। अ॒स्मे इति॑। वः॒। अ॒स्तु॒। सु॒ऽम॒तिः। चनि॑ष्ठा ॥४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्यों को कैसा वर्ताव करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्यैः कथं वर्तितव्यमित्याह ॥
हे यजत्रा मरुतः ! यद्यया व आगो यद्यया पुरुषता कराम तस्यामपि च आगो मा कराम यया वयं पुरुषार्थिनो भूम सा व ऋधक्चनिष्ठा सुमतिरस्मे अस्तु सा विद्युद्वो युष्माकमस्तु ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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