मा वो॑ दा॒त्रान्म॑रुतो॒ निर॑राम॒ मा प॒श्चाद्द॑ध्म रथ्यो विभा॒गे। आ नः॑ स्पा॒र्हे भ॑जतना वस॒व्ये॒३॒॑ यदीं॑ सुजा॒तं वृ॑षणो वो॒ अस्ति॑ ॥२१॥
mā vo dātrān maruto nir arāma mā paścād daghma rathyo vibhāge | ā naḥ spārhe bhajatanā vasavye yad īṁ sujātaṁ vṛṣaṇo vo asti ||
मा। वः॒। दा॒त्रात्। म॒रु॒तः॒। निः। अ॒रा॒म॒। मा। प॒श्चात्। द॒ध्म॒। र॒थ्यः॒। वि॒ऽभा॒गे। आ। नः॒। स्पा॒र्हे। भ॒ज॒त॒न॒। व॒स॒व्ये॑। यत्। ई॒म्। सु॒ऽजा॒तम्। वृ॒ष॒णः॒। वः॒। अस्ति॑ ॥२१॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर मनुष्य कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥
हे मरुतो ! यथा वयं वो दात्रान्मा निरराम, हे रथ्यो ! वयं पश्चान्मा दध्म, हे वृषभो ! वो यत्सुजातमस्ति तस्मिन् वसव्ये स्पार्हे विभागे यूयं नोऽस्मानीमा भजतन ॥२१॥
MATA SAVITA JOSHI
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