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मा वो॑ दा॒त्रान्म॑रुतो॒ निर॑राम॒ मा प॒श्चाद्द॑ध्म रथ्यो विभा॒गे। आ नः॑ स्पा॒र्हे भ॑जतना वस॒व्ये॒३॒॑ यदीं॑ सुजा॒तं वृ॑षणो वो॒ अस्ति॑ ॥२१॥

English Transliteration

mā vo dātrān maruto nir arāma mā paścād daghma rathyo vibhāge | ā naḥ spārhe bhajatanā vasavye yad īṁ sujātaṁ vṛṣaṇo vo asti ||

Pad Path

मा। वः॒। दा॒त्रात्। म॒रु॒तः॒। निः। अ॒रा॒म॒। मा। प॒श्चात्। द॒ध्म॒। र॒थ्यः॒। वि॒ऽभा॒गे। आ। नः॒। स्पा॒र्हे। भ॒ज॒त॒न॒। व॒स॒व्ये॑। यत्। ई॒म्। सु॒ऽजा॒तम्। वृ॒ष॒णः॒। वः॒। अस्ति॑ ॥२१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:56» Mantra:21 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:21


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) पवनों के समान मनुष्यो ! जैसे हम लोग (वः) तुम को (दात्रात्) दान से (मा) मत (निः, अराम) अलग करें, हे (रथ्यः) बहुत रथोंवालो ! हम लोग (पश्चात्) पीछे से (मा, दध्म) मत जावें, हे (वृषणः) वर्षा करानेवालो ! (वः) तुम्हारा (यत्) जो (सुजातम्) सुन्दर प्रसिद्ध सुख (अस्ति) है उस (वसव्ये) द्रव्यों में हुए (स्पार्हे) इच्छा करने योग्य (विभागे) विभाग जिसमें कि बांटते हैं उस में तुम (नः) हम लोगों को (ईम्) सब ओर से (आ, भजतन) अच्छे प्रकार सेवो ॥२१॥
Connotation: - मनुष्य सदैव विद्वानों के लिये देने योग्य सत्यासत्य व्यवहार से अलग न होवें, जो कुछ भी उत्तम सुख हो, उसको सब के लिये निवेदन करें ॥२१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मरुतो ! यथा वयं वो दात्रान्मा निरराम, हे रथ्यो ! वयं पश्चान्मा दध्म, हे वृषभो ! वो यत्सुजातमस्ति तस्मिन् वसव्ये स्पार्हे विभागे यूयं नोऽस्मानीमा भजतन ॥२१॥

Word-Meaning: - (मा) (वः) युष्मान् (दात्रात्) दानात् (मरुतः) वायव इव मनुष्याः (निः) नितराम् (अराम) (मा) (पश्चात्) (दध्म) गच्छेम। दध्यतीति गतिकर्मा। (निघं०२.१४)। (रथ्यः) बहवो रथा विद्यन्ते येषां ते (विभागे) विभजन्ति यस्मिन् तस्मिन् व्यवहारे (आ) (नः) अस्मान् (स्पार्हे) स्पृहणीये (भजतना) सेवध्वम्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वसव्ये) वसुषु द्रव्येषु भवे (यत्) (ईम्) सर्वतः (सुजातम्) सुष्ठु प्रसिद्धं सुखम् (वृषणः) (वः) युष्माकम् (अस्ति) ॥२१॥
Connotation: - मनुष्याः सदैव विद्वद्भ्यो देयात्सत्यासत्ययोर्विभागात्पृथङ्मा भवन्तु यत्किञ्चिदपि श्रेष्ठं सुखं भवेत्तत्सर्वस्मै निवेदयन्तु ॥२१॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सदैव विद्वानांना देण्यायोग्य सत्यासत्य व्यवहारापासून दूर नसावे. जे कोणते उत्तम सुख असेल ते सर्वांना सांगावे. ॥ २१ ॥