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आ वो॒ होता॑ जोहवीति स॒त्तः स॒त्राचीं॑ रा॒तिं म॑रुतो गृणा॒नः। य ईव॑तो वृषणो॒ अस्ति॑ गो॒पाः सो अद्व॑यावी हवते व उ॒क्थैः ॥१८॥

English Transliteration

ā vo hotā johavīti sattaḥ satrācīṁ rātim maruto gṛṇānaḥ | ya īvato vṛṣaṇo asti gopāḥ so advayāvī havate va ukthaiḥ ||

Pad Path

आ। वः॒। होता॑। जो॒ह॒वी॒ति॒। स॒त्तः। स॒त्राची॑। रा॒तिम्। म॒रु॒तः॒। गृ॒णा॒नः। यः। ईव॑तः। वृ॒ष॒णः॒। अस्ति॑। गो॒पाः। सः। अद्व॑यावी। ह॒व॒ते॒। वः॒। उ॒क्थैः ॥१८॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:56» Mantra:18 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे राजजन कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) पवनों के तुल्य मनुष्यो ! (यः) जो (गृणानः) स्तुति करता (सत्तः) बैठा हुआ (अद्वयावी) छल-कपट आदि से रहित (होता) देनेवाला (ईवतः) जाते हुए (वृषणः) वर्षा करनेवाले के सम्बन्ध में (वः) तुम लोगों को (आ, जोहवीति) निरन्तर बुलाता (सत्राचीम्) जो सत्य को देती है उस (रातिम्) दान को देता और (गोपाः) रक्षा करनेवाला (अस्ति) है तथा (उक्थैः) कहने योग्य वचनों से (वः) तुम लोगों को (हवते) बुलाता है, वह उत्तम है, इस को जानो ॥१८॥
Connotation: - जो राजा आदि जन अभय देने और सब की रक्षा करनेवाला, छलकपट आदि दोषरहित, सत्यविद्या दाता और सत्यग्राहक है, वही यहाँ प्रशंसित वर्त्तमान है, उसी को मनुष्य उत्तम जानें ॥१८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मरुतो ! यो गृणानः सत्तोऽद्वयावी होता ईवतो वृषणो वो युष्माना जोहवीति सत्राची रातिं ददाति गोपा अस्ति उक्थैर्वो हवते स उत्तमोऽस्तीति विजानीत ॥१८॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (वः) युष्मान् (होता) दाता (जोहवीति) भृशमाह्वयति (सत्तः) निषण्णः (सत्राचीम्) या सत्रा सत्यमञ्चति प्रापयति ताम् (रातिम्) दानम् (मरुतः) वायव इव मनुष्याः (गृणानः) स्तुवन् (यः) (ईवतः) गच्छतः (वृषणः) वृष्टिकरस्य (अस्ति) (गोपाः) रक्षकः (सः) (अद्वयावी) छलकपटादिरहितः (हवते) आह्वयति (वः) युष्मान् (उक्थैः) वक्तुमर्हैः वचनैः ॥१८॥
Connotation: - यो राजादिर्जनो भयदाता सर्वस्य रक्षकः मायादिदोषरहितः सत्यविद्याप्रदाता सत्यग्राहकोऽस्ति स एवात्र प्रशंसितो वर्त्तते तमेवोत्तमं मनुष्या विजानन्तु ॥१८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो राजा अभयदाता, सर्वांचा रक्षक, छळ-कपट द्वेषरहित, सत्य विद्येचा दाता, सत्याचा ग्राहक असतो तो प्रशंसित असतो. त्यालाच उत्तम मनुष्य समजावे. ॥ १८ ॥