Go To Mantra

य आस्ते॒ यश्च॒ चर॑ति॒ यश्च॒ पश्य॑ति नो॒ जनः॑। तेषां॒ सं ह॑न्मो अ॒क्षाणि॒ यथे॒दं ह॒र्म्यं तथा॑ ॥६॥

English Transliteration

ya āste yaś ca carati yaś ca paśyati no janaḥ | teṣāṁ saṁ hanmo akṣāṇi yathedaṁ harmyaṁ tathā ||

Pad Path

यः। आस्ते॑। यः। च॒। चर॑ति॒। यः। च॒। पश्य॑ति। नः॒। जनः॑। तेषा॑म्। सम्। ह॒न्मः॒। अ॒क्षाणि॑। यथा॑। इ॒दम्। ह॒र्म्यम्। तथा॑ ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:55» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कैसे घर बनाने चाहियें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यथा) जैसे (इदम्) यह (हर्म्यम्) मनोहर घर है (तथा) वैसे (यः) जो (जनः) मनुष्य (नः) हमारे घर में (आस्ते) बैठता है (यः, चः) और जो (चरति) जाता है (यः, च) और जो हम लोगों को (पश्यति) देखता है (तेषाम्) उन सभों की (अक्षाणि) इन्द्रियों को हम लोग (सम्, हन्मः) सहित न देखनेवाले करें, वैसे तुम भी आचरण करो ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । मनुष्यों को ऐसे घर बनाने चाहियें, जिन में सब ऋतुओं में निर्वाह हो, सब सुख, बड़े और बाहरवाले जन गृहस्थों को सहसा न देखें और न घरवाले बाहरवालों को देखें ॥६॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कीदृशानि गृहाणि निर्मातव्यानीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथेदं हर्म्यमस्ति तथा यो जनो नो गृह आस्ते यश्च चरति यश्च नोऽस्मान् पश्यति तेषामक्षाणि वयं संहन्मस्तथा यूयमप्याचरत ॥६॥

Word-Meaning: - (यः) (आस्ते) उपविशति (यः) (च) (चरति) गच्छति (यः) (च) (पश्यति) (नः) अस्मानस्माकं गृहे वा (जनः) मनुष्यः (तेषाम्) (सम्) (हन्मः) संहितानि निमीलितान्यादर्शकानि कुर्मः (अक्षाणि) इन्द्रियाणि (यथा) (इदम्) (हर्म्यम्) कमनीयं गृहम् (तथा) ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । मनुष्यैरीदृशानि गृहाणि निर्मातव्यानि यत्र सर्वेष्वृतुषु निर्वाहस्स्यात् सर्वं सुखं वर्धेत बहिः स्थाः जना गृहस्थान् सहसा न पश्येयुर्न च गृहस्था बाह्यान् पश्येयुरिति ॥६॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी अशी घरे बनविली पाहिजेत ज्यामध्ये सर्व ऋतूंमध्ये व्यवहार करता यावा. सर्व सुख वाढावे. बाहेरच्या माणसांनी घरातील माणसांना पाहता कामा नये व घरातील माणसांनी बाहेर पाहता कामा नये. ॥ ६ ॥