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प्र पू॑र्व॒जे पि॒तरा॒ नव्य॑सीभिर्गी॒र्भिः कृ॑णुध्वं॒ सद॑ने ऋ॒तस्य॑। आ नो॑ द्यावापृथिवी॒ दैव्ये॑न॒ जने॑न यातं॒ महि॑ वां॒ वरू॑थम् ॥२॥

English Transliteration

pra pūrvaje pitarā navyasībhir gīrbhiḥ kṛṇudhvaṁ sadane ṛtasya | ā no dyāvāpṛthivī daivyena janena yātam mahi vāṁ varūtham ||

Pad Path

प्र। पू॒र्व॒जे इति॑ पू॒र्व॒ऽजे। पि॒तरा॑। नव्य॑सीभिः। गीः॒ऽभिः। कृ॒णु॒ध्व॒म्। सद॑ने। ऋ॒तस्य॑। आ। नः॒। द्या॒वा॒पृ॒थि॒वी॒ इति॑। दैव्ये॑न। जने॑न। या॒त॒म्। महि॑। वा॒म्। वरू॑थम् ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:53» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे भूमि और बिजुली कैसी हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे शिल्पि विद्वानो ! तुम (नव्यसीभिः) अतीव नवीन (गीर्भिः) सुशिक्षित वाणियों से (ऋतस्य) सत्य वा जल के सम्बन्ध में (सदने) स्थानरूप जिन में स्थिर होते हैं वे (पूर्वजे) आगे से उत्पन्न हुए (पितरा) माता-पिता के समान वर्त्तमान (द्यावापृथिवी) भूमि और बिजुली (दैव्येन) विद्वानों ने बनाये हुए विद्वान् (जनेन) प्रसिद्ध जन से (वाम्) तुम दोनों के (महि) बड़े (वरूथम्) श्रेष्ठ घर को (आ, यातम्) प्राप्त हों, वैसे इनको (नः) हमको (कृणुध्वम्) सिद्ध करो ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे स्त्री-पुरुषो ! तुम पदार्थविद्या से पृथिवी आदि का विज्ञान करके सुन्दर घर बना वहाँ मनुष्यों के सुखों की उन्नति करो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते भूमिविद्युतौ कीदृश्यौ स्त इत्याह ॥

Anvay:

हे शिल्पिनो विद्वांसो ! यूयं नव्यसीभिर्गीर्भिर्ऋतस्य सम्बन्धे सदने पूर्वजे पितरेव वर्त्तमाने द्यावापृथिवी दैव्येन जनेन वां महि वरूथमा यातं तथेमे नः कृणुध्वम् ॥२॥

Word-Meaning: - (प्र) (पूर्वजे) पूर्वस्माज्जाते (पितरा) मातापितृवद्वर्तमाने (नव्यसीभिः) अतिशयेन नवीनाभिः (गीर्भिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (कृणुध्वम्) कुरुत (सदने) सीदन्ति ययोस्ते (ऋतस्य) सत्यस्योदकस्य वा (आ) (नः) अस्माकम् (द्यावापृथिवी) भूमिविद्युतौ (दैव्येन) देवैर्विद्वद्भिः कृतेन विदुषा (जनेन) प्रसिद्धेन मनुष्येण (यातम्) प्राप्नुयातम् (महि) महत् (वाम्) युवयोः स्त्रीपुरुषयोः (वरूथम्) वरं गृहम् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे स्त्रीपुरुषा ! यूयं पदार्थविद्यया पृथिव्यादिविज्ञानं कृत्वा सुन्दराणि गृहाणि निर्माय तत्र मनुष्यसुखोन्नतिं कुरुत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे स्त्री-पुरुषांनो ! तुम्ही पदार्थविद्येद्वारे पृथ्वी इत्यादीचे विज्ञान जाणून सुंदर घरे बनवून माणसांच्या सुखात वाढ करा. ॥ २ ॥