प्र पू॑र्व॒जे पि॒तरा॒ नव्य॑सीभिर्गी॒र्भिः कृ॑णुध्वं॒ सद॑ने ऋ॒तस्य॑। आ नो॑ द्यावापृथिवी॒ दैव्ये॑न॒ जने॑न यातं॒ महि॑ वां॒ वरू॑थम् ॥२॥
pra pūrvaje pitarā navyasībhir gīrbhiḥ kṛṇudhvaṁ sadane ṛtasya | ā no dyāvāpṛthivī daivyena janena yātam mahi vāṁ varūtham ||
प्र। पू॒र्व॒जे इति॑ पू॒र्व॒ऽजे। पि॒तरा॑। नव्य॑सीभिः। गीः॒ऽभिः। कृ॒णु॒ध्व॒म्। सद॑ने। ऋ॒तस्य॑। आ। नः॒। द्या॒वा॒पृ॒थि॒वी॒ इति॑। दैव्ये॑न। जने॑न। या॒त॒म्। महि॑। वा॒म्। वरू॑थम् ॥२॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वे भूमि और बिजुली कैसी हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्ते भूमिविद्युतौ कीदृश्यौ स्त इत्याह ॥
हे शिल्पिनो विद्वांसो ! यूयं नव्यसीभिर्गीर्भिर्ऋतस्य सम्बन्धे सदने पूर्वजे पितरेव वर्त्तमाने द्यावापृथिवी दैव्येन जनेन वां महि वरूथमा यातं तथेमे नः कृणुध्वम् ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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