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मि॒त्रस्तन्नो॒ वरु॑णो मामहन्त॒ शर्म॑ तो॒काय॒ तन॑याय गो॒पाः। मा वो॑ भुजेमा॒न्यजा॑त॒मेनो॒ मा तत्क॑र्म वसवो॒ यच्चय॑ध्वे ॥२॥

English Transliteration

mitras tan no varuṇo māmahanta śarma tokāya tanayāya gopāḥ | mā vo bhujemānyajātam eno mā tat karma vasavo yac cayadhve ||

Pad Path

मि॒त्रः। तत्। नः॒। वरु॑णः। म॒म॒ह॒न्त॒। शर्म॑। तो॒काय॑। तन॑याय। गो॒पाः। मा। वः॒। भु॒जे॒म॒। अ॒न्यऽजा॑तम्। एनः॑। मा। तत्। क॒र्म॒। व॒स॒वः॒। यत्। चय॑ध्वे ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:52» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वसवः) निवास करनेवालो ! (यत्) जो (अन्यजातम्) और से उत्पन्न (एनः) पाप कर्म है (तत्) वह (कर्म) कर्म तुम (मा) मत (चयध्वे) इकट्ठा करो जैसे (गोपाः) रक्षा करनेवाले (शर्म) सुख वा घर को (मामहन्त) सत्कार से वर्ते, वैसे (नः) हमारे (तोकाय) शीघ्र उत्पन्न हुए बालक के लिये और (तनयाय) सुन्दर कुमार के लिये उसको (मित्रः) प्राण के समान मित्र (वरुणः) जल के समान पालनेवाला देवें, जिससे हम लोग (वः) तुम लोगों को और पाप (मा) मत (भुजेम) भोगें ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! आप सदैव ब्रह्मचर्य्य और विद्यादान से अपने लड़कों की रक्षा और सत्कार कर बढ़ावें और आप पाप न करके और से किये हुए को भी न सेवें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे वसवो ! यदन्यजातमेनोऽस्ति तत्कर्म यूयं मा चयध्वे यथा गोपाः शर्म मामहन्त तथा नस्तोकाय तनयाय तत् मित्रो वरुणश्च प्रदद्यताम् येन वयं व एनो मा भुजेम ॥२॥

Word-Meaning: - (मित्रः) प्राण इव सखा (तत्) सुखम् (नः) अस्माकम् (वरुणः) जलमिव पालकः (मामहन्त) सत्कुर्वन्तु। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (शर्म) सुखं गृहं वा (तोकाय) सद्यो जातायापत्याय (तनयाय) सुकुमाराय (गोपाः) रक्षकाः (मा) (वः) युष्मान् (भुजेम) अभ्यवहरेम (अन्यजातम्) अन्यस्मादुत्पन्नम् (एनः) पापम् (मा) (तत्) (कर्म) (वसवः) निवसन्तः (यत्) (चयध्वे) संचिनुत ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! भवन्तस्सदैव ब्रह्मचर्यविद्यादानाभ्यां स्वापत्यानि रक्षयित्वा सत्कृत्य वर्धयन्तु स्वयं पापमकृत्वाऽन्येन कृतमपि मा भजन्तु ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! तुम्ही ब्रह्मचर्याने व विद्यादानाने आपल्या अपत्याचे रक्षण व सत्कार करून त्यांना वाढवा. स्वतः पाप करून नका व इतरांनी केलेल्या पापाचा स्वीकारही करू नका. ॥ २ ॥