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यच्छ॑ल्म॒लौ भव॑ति॒ यन्न॒दीषु॒ यदोष॑धीभ्यः॒ परि॒ जाय॑ते वि॒षम्। विश्वे॑ दे॒वा निरि॒तस्तत्सु॑वन्तु॒ मा मां पद्ये॑न॒ रप॑सा विद॒त्त्सरुः॑ ॥३॥

English Transliteration

yac chalmalau bhavati yan nadīṣu yad oṣadhībhyaḥ pari jāyate viṣam | viśve devā nir itas tat suvantu mā mām padyena rapasā vidat tsaruḥ ||

Pad Path

यत्। श॒ल्म॒लौ। भव॑ति। यत्। न॒दीषु॑। यत्। ओष॑धीभ्यः। परि॑। जाय॑ते। वि॒षम्। विश्वे॑। दे॒वाः। निः। इ॒तः। तत्। सु॒व॒न्तु॒। मा। माम्। पद्ये॑न। रप॑सा। वि॒द॒त्। त्सरुः॑ ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:50» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:17» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को रोगनिवृत्त करके ही पदार्थ सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (विषम्) प्राण हरनेवाला पदार्थ विष (शल्मलौ) सेमर आदि वृक्ष में और (यत्) जो (नदीषु) नदियों के प्रवाहों में (भवति) होता है (यत्) जो (ओषधीभ्यः) यव आदि ओषधियों से विष (परि, जायते) उत्पन्न होता है (तत्) उसको (इतः) इस शरीर से (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् जन (निः, सुवन्तु) निरन्तर दूर करें जिस कारण (पद्येन) प्राप्त होने योग्य (रपसा) पापाचरण से उत्पन्न हुआ (त्सरुः) कुटिल रोग (माम्) मुझको (मा) मत (विदत्) प्राप्त हो ॥३॥
Connotation: - हे वैद्य आदि मनुष्यो ! सब पदार्थों से वा पदार्थों में जितना विष उत्पन्न होता है, उतना सब निवार के अन्न पानी आदि सेवन करना चाहिये, जिससे तुम को कोई भी रोग न प्राप्त हो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यै रोगनिवारणं कृत्वैव पदार्थसेवनं कर्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यद्विषं शल्मलौ यन्नदीषु भवति यदोषधीभ्यो विषं परिजायते तदितो विश्वे देवा निस्सुवन्तु यतः पद्येन रपसा जातस्त्सरू रोगो मां मा विदत् ॥३॥

Word-Meaning: - (यत्) (शल्मलौ) शल्मलीवृक्षादौ (भवति) (यत्) (नदीषु) नदीनां प्रवाहेषु (यत्) (ओषधीभ्यः) यवादिभ्यः (परि) सर्वतः (जायते) उत्पद्यते (विषम्) प्राणहरम् (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (निः) निस्तारणे (इतः) अस्माच्छरीरात् (तत्) (सुवन्तु) दूरे प्रेरयन्तु (मा) माम् (पद्येन) प्राप्तव्येन (रपसा) पापाचरणेन (विदत्) लभेत (त्सरुः) कुटिलो रोगः ॥३॥
Connotation: - हे वैद्यादयो मनुष्याः ! सर्वेभ्यः पदार्थेभ्यः पदार्थेषु वा यावद्विषं प्रजायते तावत्सर्वं निवार्यान्नपानादिकं सेवनीयं यतो युष्मान् कश्चिदपि रोगो न प्राप्नुयात् ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे वैद्यांनो ! सर्व पदार्थांद्वारे किंवा पदार्थांमध्ये जे विष उत्पन्न होते त्याचे निवारण करून अन्नपाण्याचे ग्रहण केले पाहिजे. ज्यामुळे तुम्हाला कोणताही रोग होता कामा नये. ॥ ३ ॥