यच्छ॑ल्म॒लौ भव॑ति॒ यन्न॒दीषु॒ यदोष॑धीभ्यः॒ परि॒ जाय॑ते वि॒षम्। विश्वे॑ दे॒वा निरि॒तस्तत्सु॑वन्तु॒ मा मां पद्ये॑न॒ रप॑सा विद॒त्त्सरुः॑ ॥३॥
yac chalmalau bhavati yan nadīṣu yad oṣadhībhyaḥ pari jāyate viṣam | viśve devā nir itas tat suvantu mā mām padyena rapasā vidat tsaruḥ ||
यत्। श॒ल्म॒लौ। भव॑ति। यत्। न॒दीषु॑। यत्। ओष॑धीभ्यः। परि॑। जाय॑ते। वि॒षम्। विश्वे॑। दे॒वाः। निः। इ॒तः। तत्। सु॒व॒न्तु॒। मा। माम्। पद्ये॑न। रप॑सा। वि॒द॒त्। त्सरुः॑ ॥३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यों को रोगनिवृत्त करके ही पदार्थ सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
मनुष्यै रोगनिवारणं कृत्वैव पदार्थसेवनं कर्तव्यमित्याह ॥
हे मनुष्या ! यद्विषं शल्मलौ यन्नदीषु भवति यदोषधीभ्यो विषं परिजायते तदितो विश्वे देवा निस्सुवन्तु यतः पद्येन रपसा जातस्त्सरू रोगो मां मा विदत् ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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