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पृ॒ष्टो दि॒वि धाय्य॒ग्निः पृ॑थि॒व्यां ने॒ता सिन्धू॑नां वृष॒भः स्तिया॑नाम्। स मानु॑षीर॒भि विशो॒ वि भा॑ति वैश्वान॒रो वा॑वृधा॒नो वरे॑ण ॥२॥

English Transliteration

pṛṣṭo divi dhāyy agniḥ pṛthivyāṁ netā sindhūnāṁ vṛṣabhaḥ stiyānām | sa mānuṣīr abhi viśo vi bhāti vaiśvānaro vāvṛdhāno vareṇa ||

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Pad Path

पृ॒ष्टः। दि॒वि। धायि॑। अ॒ग्निः। पृ॒थि॒व्याम्। ने॒ता। सिन्धू॑नाम्। वृ॒ष॒भः। स्तिया॑नाम्। सः। मानु॑षीः। अ॒भि। विशः॑। वि। भा॒ति॒। वै॒श्वा॒न॒रः। व॒वृ॒धा॒नः। वरे॑ण ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:5» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! योगियों से जो (अग्निः) अग्नि के तुल्य स्वयं प्रकाशस्वरूप ईश्वर (दिवि) सूर्य (पृथिव्याम्) भूमि वा अन्तरिक्ष में (धायि) धारण किया जाता (सिन्धूनाम्) नदी वा समुद्रों और (स्तियानाम्) जलों के बीच (वृषभः) अनन्तबलयुक्त हुआ (नेता) मर्यादा का स्थापक (वरेण) उत्तम स्वभाव के साथ (वावृधानः) सदा बढ़ानेवाला (वैश्वानरः) सब को अपने-अपने कामों में नियोजक (मानुषीः) मनुष्यसम्बन्धी (विशः) प्रजाओं को (अभि, वि, भाति) प्रकाशित करता है (सः) वह (पृष्टः) पूछने योग्य है ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो सब प्रजा का नियम व्यवस्था में स्थापक, सूर्यादि प्रजा का प्रकाशक, सब का उपास्य देव, वह पूछने, सुनने, जानने, विचारने और मानने योग्य है ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! योगिभिर्योऽग्निर्दिवि पृथिव्यां धायि सिन्धूनां स्तियानां वृषभः सन्नेता वरेण वावृधानो यो वैश्वानरो मानुषीर्विशोऽभि वि भाति स पृष्टोऽस्ति ॥२॥

Word-Meaning: - (पृष्टः) प्रष्टव्यः (दिवि) सूर्ये (धायि) ध्रियते (अग्निः) पावक इव स्वप्रकाश ईश्वरः (पृथिव्याम्) अन्तरिक्षे भूमौ वा (नेता) मर्यादायाः स्थापकः (सिन्धूनाम्) नदीनां समुद्राणां वा (वृषभः) अनन्तबलः (स्तियानाम्) अपां जलानाम्। स्तिया आपो भवन्ति स्त्यायनादिति। (निरु० ६.१७)। (सः) (मानुषीः) मनुष्यसम्बन्धिनीरिमाः (अभि) (विशः) प्रजाः (वि) (भाति) प्रकाशते (वैश्वानरः) सर्वेषां नायकः (वावृधानः) सदा वर्धयिता (वरेण) उत्तमस्वभावेन ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यः सर्वस्याः प्रजाया नियमव्यवस्थायां स्थापकस्सूर्यादिप्रजाप्रकाशकः सर्वेषामुपास्यदेवो स प्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो ज्ञातव्योऽस्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जो सर्व प्रजेच्या नियमाचा व्यवस्थापक, सूर्य इत्यादीचा प्रकाशक, सर्वांचा उपास्य देव आहे तो विचार करण्या, जाणण्या-ऐकण्या व मानण्यायोग्य आहे. ॥ २ ॥