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याः सूर्यो॑ र॒श्मिभि॑रात॒तान॒ याभ्य॒ इन्द्रो॒ अर॑दद्गा॒तुमू॒र्मिम्। ते सि॑न्धवो॒ वरि॑वो धातना नो यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥४॥

English Transliteration

yāḥ sūryo raśmibhir ātatāna yābhya indro aradad gātum ūrmim | te sindhavo varivo dhātanā no yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

याः। सूर्यः॑। र॒श्मिऽभिः॑। आ॒ऽत॒तान॑। याभ्यः॑। इन्द्रः॑। अर॑दत्। गा॒तुम्। ऊ॒र्मिम्। ते। सि॒न्ध॒वः॒। वरि॑वः। धा॒त॒न॒। नः॒। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:47» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर स्त्री-पुरुष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे पुरुषो ! (सूर्यः) सूर्यमण्डल (रश्मिभिः) अपनी किरणों से (याः) जिन जलों को (आ, ततान) विस्तारता है (इन्द्रः) बिजुली (याभ्यः) जिन जलों से (गातुम्) भूमि को और (ऊर्मिम्) तरङ्ग को (अरदत्) छिन्न-भिन्न करती है, उनको अनुहारि स्त्री-पुरुष वर्तें जैसे (ते) वे (सिन्धवः) नदियाँ समुद्र को पूरा करती हैं, वैसे जो स्त्रियाँ सुखों से हम लोगों को (धातन) धारण करें (नः) हमारी (वरिवः) सेवा करें, उनकी हम भी सेवा करें, हे पतिव्रता स्त्रियो ! (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम पति लोगों की (सदा) सदा (पात) रक्षा करो ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे विद्वानो ! जैसे सूर्य अपने तेजों से भूमि के जलों को खींच कर विस्तार करता है, वैसे अच्छे कामों से प्रजा को तुम विस्तारो ॥४॥ इस सूक्त में विद्वान्,स्त्री-पुरुष के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सैंतालीसवाँ सूक्त और चौदहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स्त्रीपुरुषाः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे पुरुषाः ! सूर्यो रश्मिभिर्या आततान इन्द्रो याभ्यो गातुमूर्मिमरदत् ता अनुकृत्य स्त्रीपुरुषाः प्रवर्तन्ताम् यथा ते सिन्धवः समुद्रं पूरयन्ति तथा या स्त्रियः सुखैरस्मान् धातन नोऽस्माकं वरिवः कुर्युस्ता वयमपि सेवेमहि, हे पतिव्रता स्त्रियो ! यूयं स्वस्तिभिर्नोऽस्मान् पतीन् सदा पात ॥४॥

Word-Meaning: - (याः) अपः (सूर्यः) सविता (रश्मिभिः) किरणैः (आततान) आतनोति विस्तृणाति (याभ्यः) अद्भ्यः (इन्द्रः) विद्युत् (अरदत्) विलिखति (गातुम्) भूमिम्। गातुरिति पृथिवीनाम। (निघं०१.१)। (ऊर्मिम्) तरङ्गम् (ते) (सिन्धवः) नद्यः (वरिवः) परिचरणम् (धातन) धर्त (नः) अस्माकम् (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) सुखादिभिः (सदा) (नः) ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यथा सूर्यः स्वतेजोभिः भूमेर्जलान्याकृष्य विस्तृणाति तथा सत्कर्मभिः प्रजाः यूयं विस्तृणीतेति ॥४॥ अत्र विद्वत्स्त्रीपुरुषगुणवर्णनादेतदर्थस्य सूक्तस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तचत्वारिंशत्तमं सूक्तं चतुर्दशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जसा सूर्य आपल्या तेजाने भूमीवरील जल आकर्षित करून ते विस्तीर्ण करतो तसे चांगले कार्य करून प्रजा वाढवा. ॥ ४ ॥