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इ॒मं नो॑ अग्ने अध्व॒रं जु॑षस्व म॒रुत्स्विन्द्रे॑ य॒शसं॑ कृधी नः। आ नक्ता॑ ब॒र्हिः स॑दतामु॒षासो॒शन्ता॑ मि॒त्रावरु॑णा यजे॒ह ॥५॥

English Transliteration

imaṁ no agne adhvaraṁ juṣasva marutsv indre yaśasaṁ kṛdhī naḥ | ā naktā barhiḥ sadatām uṣāsośantā mitrāvaruṇā yajeha ||

Pad Path

इ॒मम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। अ॒ध्व॒रम्। जु॒ष॒स्व॒। म॒रुत्ऽसु॑। इन्द्रे॑। य॒शस॑म्। कृ॒धि॒। नः॒। आ। नक्ता॑। ब॒र्हिः। स॒द॒ता॒म्। उ॒षसा॑। उ॒शन्ता॑। मि॒त्रावरु॑णा। य॒ज॒। इ॒ह ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:42» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे गृहस्थ अतिथि परस्पर के लिये क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान विद्या से प्रकाशित अतिथि ! आप (मरुत्सु) मनुष्यों के (इन्द्रे) और राजा के निमित्त (नः) हम लोगों के (इमम्) इस (अध्वरम्) उपदेशरूपी यज्ञ को निरन्तर (जुषस्व) सेवो (नः) हमारी (यशसम्) कीर्ति की वृद्धि (कृधि) करो (नक्तोषासा) रात्रि को दिन के साथ (बर्हिः) तथा उत्तम आसन को (आ, सदताम्) स्वीकार करो स्थिर होओ और (इह) इस जगत् में (उशन्ता) कामना करते हुए (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान स्त्री-पुरुषों को आप (यज) मिलो ॥५॥
Connotation: - जब अतिथि आवें तब गृहस्थ अर्घ्य, पाद्य, आसन, मधुपर्क, वचन और अन्नादिकों से उसका सत्कार कर और पूछ कर सत्य और असत्य का निर्णय करें और अतिथि भी प्रश्नों के समाधान देवें ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते गृहस्थातिथयः परस्परस्मै किं किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! त्वं मरुत्स्विन्द्रे न इममध्वरं सततं जुषस्व नोऽस्माकं यशसं कृधि नक्तोषासा बर्हिरासदतामिहोशन्ता मित्रावरुणा त्वं यज ॥५॥

Word-Meaning: - (इमम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) पावक इव विद्याप्रकाशितातिथे (अध्वरम्) उपदेशाख्यं यज्ञम् (जुषस्व) (मरुत्सु) मनुष्येषु (इन्द्रे) राजनि (यशसम्) कीर्तिम् (कृधि) अत्र द्व्यच० इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (आ) (नक्ता) रात्रिम् (बर्हिः) उत्तमासनम् (सदताम्) आसीदेत् (उषसा) दिनेन (उशन्ता) कामयमानौ (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविव स्त्रीपुरुषौ (यज) (इह) अस्मिन् जगति ॥५॥
Connotation: - यदाऽतिथिरागच्छेत्तदा गृहस्था अर्घ्यपाद्यासनमधुपर्कप्रियवचनान्नादिभिः सत्कृत्य पृष्ट्वा सत्यासत्यनिर्णयं कुर्वन्त्वतिथिञ्च प्रश्नान् समादधातु ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा अतिथी घरी येतो तेव्हा गृहस्थानी अर्घ्य, पाद्य, आसन, मधुपर्क, प्रियवचन इत्यादींनी सत्कार करून व प्रश्न विचारून सत्य-असत्याचा निर्णय घ्यावा व अतिथींनीही त्यांच्या प्रश्नांची उत्तरे द्यावीत. ॥ ५ ॥ हे विद्वानांनो ! तुम्ही आम्हाला विद्या द्या. ज्यामुळे आम्ही प्रजेकडून उत्तम धन प्राप्त करून तुमचे सदैव रक्षण करू. ॥ ५ ॥