य॒दा वी॒रस्य॑ रे॒वतो॑ दुरो॒णे स्यो॑न॒शीरति॑थिरा॒चिके॑तत्। सुप्री॑तो अ॒ग्निः सुधि॑तो॒ दम॒ आ स वि॒शे दा॑ति॒ वार्य॒मिय॑त्यै ॥४॥
yadā vīrasya revato duroṇe syonaśīr atithir āciketat | suprīto agniḥ sudhito dama ā sa viśe dāti vāryam iyatyai ||
य॒दा। वी॒रस्य॑। रे॒वतः॑। दु॒रो॒णे। स्यो॒न॒ऽशीः। अति॑थिः। आ॒ऽचिके॑तत्। सुऽप्री॑तः। अ॒ग्निः। सुऽधि॑तः। दमे॑। आ। सः। वि॒शे। दा॒ति॒। वार्य॑म्। इय॑त्यै ॥४॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर अतिथि और गृहस्थ परस्पर क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनरतिथिगृहस्थाः परस्परं किं कुर्युरित्याह ॥
यदा स्योनशीरतिथी रेवतो वीरस्य दुरोण आ चिकेतत्तदा सोऽग्निरिव सुधितः सुप्रीतो गृहस्थस्य दमे इयत्यै विशे वार्यमा दाति ॥४॥
MATA SAVITA JOSHI
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