समु॑ वो य॒ज्ञं म॑हय॒न्नमो॑भिः॒ प्र होता॑ म॒न्द्रो रि॑रिच उपा॒के। यज॑स्व॒ सु पु॑र्वणीक दे॒वाना य॒ज्ञिया॑म॒रम॑तिं ववृत्याः ॥३॥
sam u vo yajñam mahayan namobhiḥ pra hotā mandro ririca upāke | yajasva su purvaṇīka devān ā yajñiyām aramatiṁ vavṛtyāḥ ||
सम्। ऊँ॒ इति॑। वः॒। य॒ज्ञम्। म॒ह॒य॒न्। नमः॑ऽभिः। प्र। होता॑। म॒न्द्रः। रि॒रि॒चे॒। उ॒पा॒के। यज॑स्व। सु। पु॒रु॒ऽअ॒नी॒क॒। दे॒वान्। आ। य॒ज्ञिया॑म्। अ॒रऽम॑तिम्। व॒वृ॒त्याः॒ ॥३॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर विद्वान् क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥
हे पुर्वणीक राजन् ! त्वं देवान् सुयजस्व यज्ञियामरमतिमा ववृत्या मन्द्रो होता सन्नुपाके प्र रिरिचे, हे विद्वांसो ! ये नमोभिर्वो यज्ञं सम्महयन् तानु यूयं सत्कुरुत ॥३॥
MATA SAVITA JOSHI
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