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प्र ब्र॒ह्माणो॒ अङ्गि॑रसो नक्षन्त॒ प्र क्र॑न्द॒नुर्न॑भ॒न्य॑स्य वेतु। प्र धे॒नव॑ उद॒प्रुतो॑ नवन्त यु॒ज्याता॒मद्री॑ अध्व॒रस्य॒ पेशः॑ ॥१॥

English Transliteration

pra brahmāṇo aṅgiraso nakṣanta pra krandanur nabhanyasya vetu | pra dhenava udapruto navanta yujyātām adrī adhvarasya peśaḥ ||

Pad Path

प्र। ब्र॒ह्माणः॑। अङ्गि॑रसः। न॒क्ष॒न्त॒। प्र। क्र॒न्द॒नुः। न॒भ॒न्य॑स्य। वे॒तु॒। प्र। धे॒नवः॑। उ॒द॒ऽप्रुतः॑। न॒व॒न्त॒। यु॒ज्याता॑म्। अद्री॒ इति॑। अ॒ध्व॒रस्य॑। पेशः॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:42» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छः ऋचावाले बयालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में पूरी विद्यावाले जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (ब्रह्माणः) चारों वेदों के जाननेवाले जनो ! (अङ्गिरसः) प्राणों के समान विद्वान् जन जैसे (क्रन्दनुः) बुलानेवाला (नभन्यस्य) अन्तरिक्ष पृथिवी वा सुख में उत्पन्न हुए (अध्वरस्य) न नष्ट करने योग्य व्यवहार के (पेशः) सुन्दर रूप को (प्र, वेतु) अच्छे प्रकार प्राप्त हो वा (उदप्रुतः) उदक जल को प्राप्त हुईं नदियों के समान (धेनवः) और दूध देनेवाली गौओं के समान वाणी अहिंसनीय व्यवहार के रूप की (नवन्त) स्तुति करती हैं और जैसे (अद्री) मेघ और बिजुली अहिंसनीय व्यवहार के रूप को (प्र, युज्याताम्) प्रुयक्त हों आप लोग वैसी विद्याओं में (प्र, नक्षन्त) व्याप्त होओ ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो चारों वेद के जाननेवाले विद्वान् जन, अहिंसादिलक्षण हैं जिसके ऐसे धर्म के स्वरूप का बोध कराते हैं, वे स्तुति करने योग्य होते हैं ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ पूर्णविद्या जनाः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे ब्रह्माणोऽङ्गिरसो विद्वांसो यथा क्रन्दनुर्नभन्यस्याध्वरस्य पेशः प्र वेत्वुदप्रुत इव धेनवोऽध्वरस्य पेशो नवन्त यथाऽद्री अध्वरस्य पेशो प्र युज्यातां तथा विद्यासु भवन्तः प्र नक्षन्त ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) (ब्रह्माणः) चतुर्वेदविदः (अङ्गिरसः) प्राणा इव सद्विद्यासु व्याप्ताः (नक्षन्त) व्याप्नुवन्तु (प्र) (क्रन्दनुः) आह्वाता (नभन्यस्य) नभस्यन्तरिक्षे पृथिव्यां सुखे वा भवस्य। नभ इति साधारणनाम। (निघं०१.४)। (वेतु) व्याप्नोतु प्राप्नोतु (प्र) (धेनवः) दुग्धदात्र्यो गाव इव वाचः (उदप्रुतः) उदकं प्राप्ता नद्य इव (नवन्त) स्तुवन्ति (युज्याताम्) युक्तौ भवतः (अद्री) मेघविद्युतौ (अध्वरस्य) अहिंसनीयस्य व्यवहारस्य (पेशः) सुरूपम् ॥१॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये चतुर्वेदविदो विद्वांसोऽहिंसादिलक्षणस्य धर्मस्य स्वरूपं बोधयन्ति ते स्तुत्या भवन्ति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विश्वेदेवांच्या गुण, कर्मांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे चारही वेद जाणणारे विद्वान अहिंसा इत्यादी लक्षणांनी युक्त असतात, धर्माच्या स्वरूपाचा बोध करवितात, ते स्तुती करण्यायोग्य असतात. ॥ १ ॥