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सम॑ध्व॒रायो॒षसो॑ नमन्त दधि॒क्रावे॑व॒ शुच॑ये प॒दाय॑। अ॒र्वा॒ची॒नं व॑सु॒विदं॒ भगं॑ नो॒ रथ॑मि॒वाश्वा॑ वा॒जिन॒ आ व॑हन्तु ॥६॥

English Transliteration

sam adhvarāyoṣaso namanta dadhikrāveva śucaye padāya | arvācīnaṁ vasuvidam bhagaṁ no ratham ivāśvā vājina ā vahantu ||

Pad Path

सम्। अ॒ध्व॒राय॑। उ॒षसः॑। न॒म॒न्त॒। द॒धि॒क्रावा॑ऽइव। शुच॑ये। प॒दाय॑। अ॒र्वा॒ची॒नम्। व॒सु॒ऽविद॑म्। भग॑म्। नः॒। रथ॑म्ऽइव। अश्वाः॑। वा॒जिनः॑। आ। व॒ह॒न्तु॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:41» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:8» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कैसे होकर क्या पाकर क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (रथमिव, अश्वाः) रमणीय यान को महान् वेगवाले घोड़े वा शीघ्र जानेवाले बिजुली आदि पदार्थ जैसे वैसे जो (वाजिनः) विशेष ज्ञानी जन (शुचये) पवित्र (अध्वराय) हिंसारहित धर्मयुक्त व्यवहार (पदाय) और पाने योग्य पदार्थ के लिये (उषसः) प्रभात वेला की (दधिक्रावेव) धारणा करनेवालों को प्राप्त होते के समान (सम्, नमन्त) अच्छे प्रकार नमते हैं वे (अर्वाचीनम्) तत्काल प्रसिद्ध हुए नवीन (वसुविदम्) धनों को प्राप्त होते हुए (भगम्) सर्व ऐश्वर्य्य युक्त जन को और (नः) हम लोगों को (आ, वहन्तु) सब ओर से उन्नति को पहुँचावें ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य प्रातःकाल उठ के वेगयुक्त घोड़ों के समान शीघ्र जाकर आकर आलस्य छोड़ ऐश्वर्य को पाय नम्र होते हैं, वे ही पवित्र परमात्मा को पा सकते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भूत्वा किं प्राप्य किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

रथमिवाश्वा ये वाजिनो जनाः शुचयेऽध्वराय पदायोषसो दधिक्रावेव सन्नमन्त तेऽर्वाचीनं वसुविदं भगं न आ वहन्तु ॥६॥

Word-Meaning: - (सम्) (अध्वराय) हिंसारहिताय धर्म्याय व्यवहाराय (उषसः) प्रभातवेलायाः (नमन्त) नमन्ति (दधिक्रावेव) धारकान् क्रमतइव (शुचये) पवित्राय (पदाय) प्राप्तव्याय (अर्वाचीनम्) इदानीन्तनं नूतनम् (वसुविदम्) यो वसूनि विन्दति प्राप्नोति तम् (भगम्) सर्वैश्वर्ययुक्तम् (नः) अस्मान् (रथमिव) रमणीयं यानमिव (अश्वाः) महान्तो वेगवन्तस्तुरङ्गा आशुगामिनो विद्युदादयो वा (वाजिनः) (आ) (वहन्तु) ॥६॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्याः प्रातरुत्थाय वेगयुक्ताश्ववत्सद्यो गत्वाऽऽगत्वाऽऽलस्यं विहायैश्वर्यं प्राप्य नम्रा जायन्ते त एव पवित्रं परमात्मानं प्राप्तुं शक्नुवन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे आळस सोडून प्रातःकाळी उठून वेगयुक्त घोड्याप्रमाणे शीघ्र जाणे-येणे करून ऐश्वर्य प्राप्त करतात व नम्र असतात तीच पवित्र परमात्म्याला प्राप्त करू शकतात. ॥ ६ ॥