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त्वम॑ग्ने वनुष्य॒तो नि पा॑हि॒ त्वमु॑ नः सहसावन्नव॒द्यात्। सं त्वा॑ ध्वस्म॒न्वद॒भ्ये॑तु॒ पाथः॒ सं र॒यिः स्पृ॑ह॒याय्यः॑ सह॒स्री ॥९॥

English Transliteration

tvam agne vanuṣyato ni pāhi tvam u naḥ sahasāvann avadyāt | saṁ tvā dhvasmanvad abhy etu pāthaḥ saṁ rayiḥ spṛhayāyyaḥ sahasrī ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ग्ने॒। व॒नु॒ष्य॒तः। नि। पा॒हि॒। त्वम्। ऊँ॒ इति॑। नः॒। स॒ह॒सा॒ऽव॒न्। अ॒व॒द्यात्। सम्। त्वा॒। ध्व॒स्म॒न्ऽवत्। अ॒भि। ए॒तु॒। पाथः॑। सम्। र॒यिः। स्पृ॒ह॒याय्यः॑। स॒ह॒स्री ॥९॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:4» Mantra:9 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहसावन्) बहुत बल से युक्त (अग्ने) के तुल्य तेजस्वि विद्वन् ! (त्वम्) आप (वनुष्यतः) माँगनेवालों की (नि, पाहि) निरन्तर रक्षा कीजिये (उ) और (त्वम्) आप (अवद्यात्) निन्दित अधर्माचरण से (नः) हमारी निरन्तर रक्षा कीजिये जिससे (त्वा) आपको (ध्वस्मन्वत्) दोष और विकार जिसके नष्ट हो गये उस (पाथः) अन्न को (सम्, अभि, एतु) सब ओर से प्राप्त हूजिये (सहस्री) असंख्य (स्पृहयाय्यः) चाहने योग्य (रयिः) धन भी (सम्) सम्यक् प्राप्त होवे ॥९॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि आप से रक्षा चाहते हुए प्रजाजनों की निरन्तर रक्षा करें और आप स्वयं अधर्माचरण से पृथक् वर्त्तें तो आप को अतुल धनधान्य प्राप्त होवें ॥९॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

Anvay:

हे सहसावन्नग्ने ! त्वं वनुष्यतो नि पाहि त्वमु अवद्यान्नो नि पाहि यतस्त्वा ध्वस्मन्वत् पाथः समभ्येतु सहस्री स्पृहयाय्यो रयिश्च समभ्येतु ॥९॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अग्ने) अग्निरिव विद्वन्राजन् सज्जन (वनुष्यतः) याचमानान् (नि) नित्यम् (पाहि) (त्वम्) (त्वम्) (उ) (नः) अस्मान् (सहसावन्) बहुबलेन युक्त (अवद्यात्) अधर्माचरणान्निन्द्यात् (सम्) (त्वा) त्वाम् (ध्वस्मन्वत्) ध्वस्तदोषविकारम् (अभि) (एतु) सर्वतः प्राप्नोतु (पाथः) अन्नम् [सम्] (रयिः) धनम् (स्पृहयाय्यः) स्पृहणीयः (सहस्री) असंख्यः ॥९॥
Connotation: - हे राजन् ! यदि त्वं त्वत्तो रक्षणमिच्छतः प्रजाजनान् सततं रक्षेस्त्वं च निन्द्यादधर्माचरणात् पृथग्वर्त्तेत तर्ह्यतुले धनधान्ये त्वां प्राप्नुयाताम् ॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा ! जर रक्षण इच्छिणाऱ्या प्रजेचे निरंतर रक्षण केलेस व स्वतः अधर्माचरणापासून पृथक राहिलास तर तुला पुष्कळ धन प्राप्त होईल. ॥ ९ ॥