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न॒हि ग्रभा॒यार॑णः सु॒शेवो॒ऽन्योद॑र्यो॒ मन॑सा॒ मन्त॒वा उ॑। अधा॑ चि॒दोकः॒ पुन॒रित्स ए॒त्या नो॑ वा॒ज्य॑भी॒षाळे॑तु॒ नव्यः॑ ॥८॥

English Transliteration

nahi grabhāyāraṇaḥ suśevo nyodaryo manasā mantavā u | adhā cid okaḥ punar it sa ety ā no vājy abhīṣāḻ etu navyaḥ ||

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Pad Path

न॒हि। ग्रभा॑य। अर॑णः। सु॒ऽशेवः॑। अ॒न्यऽउ॑दर्यः। मन॑सा। मन्त॒वै। ऊँ॒ इति॑। अध॑। चि॒त्। ओकः॑। पुनः॑। इत्। सः। ए॒ति॒। आ। नः॒। वा॒जी। अ॒भी॒षाट्। ए॒तु॒। नव्यः॑ ॥८॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:4» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कौन पुत्र मानने के योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्य ! जो (अरुणः) रमण न करता हुआ (सुशेवः) सुन्दर सुख से युक्त (अन्योदर्य्यः) दूसरे के उदर से उत्पन्न हुआ हो (सः) वह (मनसा) अन्तःकरण से (ग्रभाय) ग्रहण के लिये (नहि) नहीं (मन्तवै) मानने योग्य है (चित्, उ, पुनः, इत्) और भी फिर ही वह (ओकः) घर को नहीं (एति) प्राप्त होता (अध) इस के अनन्तर जो (नव्यः) नवीन (अभीषाट्) अच्छा सहनशील (वाजी) विज्ञानवाला (नः) हमको (आ, एतु) प्राप्त हो ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! अन्य गोत्र में अन्य पुरुष से उत्पन्न हुए बालक को पुत्र करने के लिये नहीं ग्रहण करना चाहिये क्योंकि वह घर आदि का दायभागी नहीं हो सकता, किन्तु जो अपने शरीर से उत्पन्न वा अपने गोत्र से लिया हुआ हो, वही पुत्र वा पुत्र का प्रतिनिधि होवे ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कः पुत्रो मन्तुं योग्योऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्य ! योऽरणः सुशेवोऽन्योदर्य्यो भवेत्स मनसा ग्रभाय नहि मन्तवै चिदु पुनरित् स ओको न ह्येत्यध यो नव्योऽभिषाड् वाजी नोऽस्माना एतु ॥८॥

Word-Meaning: - (नहि) निषेधे (ग्रभाय) ग्रहणाय (अरणः) अरममाणः (सुशेवः) सुसुखः (अन्योदर्य्यः) अन्योदराज्जातः (मनसा) अन्तःकरणेन (मन्तवै) मन्तुं योग्यः (उ) (अध) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (अष्टा० ६.३.१३४)। (चित्) अपि (ओकः) गृहम् (पुनः) (इत्) एव (सः) (एति) (आ) (नः) अस्मान् (वाजी) विज्ञानवान् (अभीषाट्) योऽभिसहते सः (एतु) प्राप्नोतु (नव्यः) नवेषु भवः ॥८॥
Connotation: - हे मनुष्याः ! पुत्रत्वायाऽन्यगोत्रजोऽन्यस्माज्जातो न गृहीतव्यः स च गृहादिदायभागी न भवेत्किन्तु य औरसो स्वगोत्राद्गृहीतो वा भवेत्स एव पुत्रः पुत्रप्रतिनिधिर्वा भवेत् ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! दुसऱ्या गोत्रातील दुसऱ्या पुरुषापासून उत्पन्न झालेल्या बालकाला पुत्र म्हणून ग्रहण करू नये. कारण तो घर इत्यादीचा भागीदार बनू शकत नाही. जो आपल्या शरीरापासून उत्पन्न झालेला असेल किंवा आपल्या गोत्रातून घेतलेला असेल तर त्याला पुत्र किंवा पुत्राचा प्रतिनिधी म्हणता येते. ॥ ८ ॥