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ते हि य॒ज्ञेषु॑ य॒ज्ञिया॑स॒ ऊमाः॑ स॒धस्थं॒ विश्वे॑ अ॒भि सन्ति॑ दे॒वाः। ताँ अ॑ध्व॒र उ॑श॒तो य॑क्ष्यग्ने श्रु॒ष्टी भगं॒ नास॑त्या॒ पुरं॑धिम् ॥४॥

English Transliteration

te hi yajñeṣu yajñiyāsa ūmāḥ sadhasthaṁ viśve abhi santi devāḥ | tām̐ adhvara uśato yakṣy agne śruṣṭī bhagaṁ nāsatyā puraṁdhim ||

Pad Path

ते। हि। य॒ज्ञेषु॑। य॒ज्ञिया॑सः। ऊमाः॑। स॒धऽस्थ॑म्। विश्वे॑। अ॒भि। सन्ति॑ दे॒वाः। तान्। अ॒ध्व॒रे। उ॒श॒तः। य॒क्षि॒। अ॒ग्ने॒। श्रु॒ष्टी। भग॑म्। नास॑त्या। पुर॑म्ऽधिम् ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:39» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:6» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् कैसे हों और क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - (ते) वे (हि) ही (यज्ञियासः) यज्ञ सिद्ध करने (ऊमाः) और रक्षा करनेवाले (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् (यज्ञेषु) विद्या देने न देने के व्यवहारों में (अभि, सन्ति) सम्मुख वर्त्तमान हैं (तान्) उन (अध्वरे) अहिंसनीय व्यवहार में (सधस्थम्) एक स्थान को (उशतः) चाहनेवाले विद्वानों को मैं (यक्षि) मिलूँ जो (नासत्या) असत्यव्यवहाररहित अध्यापक और उपदेशक (पुरन्धिम्) बहुत सुखों के धारण करनेवाले (भगम्) ऐश्वर्य को (श्रुष्टी) शीघ्र देवें, जैसे मैं मिलूँ, वैसे ही हे (अग्ने) विद्वान् ! आप भी इन को मिलो ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो सत्यविद्या और धर्म के प्रकाश करनेवाले वेदवेत्ता अध्यापक, उपदेशक, विद्वान् सब मनुष्य आदि की उन्नति करते हैं, वे ही सर्वदा सर्वथा सब को साकार करने योग्य होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः कीदृशाः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

ते हि यज्ञियास ऊमा विश्वे देवा यज्ञेष्वभि सन्ति तानध्वरे सधस्थमुशतो विदुषोऽहं यक्षि यौ नासत्या पुरन्धिं भगं श्रुष्टी दद्यातां तौ यथाऽहं यक्षि तथा हे अग्ने ! त्वमप्येतान् यज ॥४॥

Word-Meaning: - (ते) (हि) यतः (यज्ञेषु) विद्यादानाऽदानादिव्यवहारेषु (यज्ञियासः) यज्ञसिद्धिकराः (ऊमाः) रक्षादिकर्तारः (सधस्थम्) समानस्थानम् (विश्वे) सर्वे (अभि) आभिमुख्ये (सन्ति) (देवाः) विद्वांसः (तान्) (अध्वरे) अहिंसनीये व्यवहारे (उशतः) कामयमानान् (यक्षि) सङ्गमयेयम् (अग्ने) विद्वन् (श्रुष्टी) क्षिप्रम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (नासत्या) अविद्यमानासत्यव्यवहारावध्यापकोपदेशकौ (पुरन्धिम्) बहूनां सुखानां धर्तारम् ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! ये सत्यविद्याधर्मप्रकाशका वेदविदः अध्यापकोपदेशका विद्वांसो जगति सर्वान् मनुष्यादीन्नुन्नयन्ति ते हि सर्वदा सर्वथा सर्वैस्सत्कर्तव्या भवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जे सत्यविद्या व धर्माचे प्रकाशक वेदवेत्ते, अध्यापक, उपदेशक, विद्वान सर्व माणसांची उन्नती करतात तेच सदैव सर्वांकडून सत्कार घेण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥