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वाजे॑वाजेऽवत वाजिनो नो॒ धने॑षु विप्रा अमृता ऋतज्ञाः। अ॒स्य मध्वः॑ पिबत मा॒दय॑ध्वं तृ॒प्ता या॑त प॒थिभि॑र्देव॒यानैः॑ ॥८॥

English Transliteration

vāje-vāje vata vājino no dhaneṣu viprā amṛtā ṛtajñāḥ | asya madhvaḥ pibata mādayadhvaṁ tṛptā yāta pathibhir devayānaiḥ ||

Pad Path

वाजे॑ऽवाजे। अ॒व॒त॒। वा॒जि॒नः॒। नः॒। धने॑षु। वि॒प्राः॒। अ॒मृ॒ताः॒। ऋ॒त॒ऽज्ञाः॒। अ॒स्य। मध्वः॑। पि॒ब॒त॒। मा॒दय॑ध्वम्। तृ॒प्ताः। या॒त॒। प॒थिऽभिः॑। दे॒व॒ऽयानैः॑ ॥८॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:38» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:8 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अमृताः) मृत्युरहित (ऋतज्ञाः) सत्य व्यवहार वा ब्रह्म के जाननेवाले (वाजिनः) बहु विज्ञान अन्न बल और वेगयुक्त (विप्राः) मेधावी सज्जनो ! तुम (धनेषु) धनों में (वाजेवाजे) और संग्राम संग्राम में (नः) हम लोगों की (अवत) रक्षा करो (अस्य) इस (मध्वः) मधुरादि गुणयुक्त रस को (पिबत) पीओ, हम लोगों को (मादयध्वम्) आनन्दित करो और (तृप्ताः) तृप्त होते हुए (देवयानैः) विद्वानों के मार्ग जिन से जाना होता उन (पथिभिः) मार्गों से (यात) जाओ ॥८॥
Connotation: - विद्वानों के प्रति ईश्वर की यह आज्ञा है कि तुम धार्मिक विद्वान् होकर सब की रक्षा निरन्तर करो और आनन्दित तथा बड़ी ओषधियों के रस से नीरोग हुए सब को आनन्दित और तृप्त कर धर्मात्माओं के मार्गों से आप चलते हुए औरों को निरन्तर उन्हीं मार्गों से चलावें ॥८॥ इस सूक्त मे सविता, ऐश्वर्य, विद्वान् और विदुषियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अड़तीसवाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे अमृता ऋतज्ञा वाजिनो विप्रा ! यूयं धनेषु वाजेवाजे च नोऽस्मानवत अस्य मध्वः पिबत अस्मान् मादयध्वम् तृप्ताः सन्तो देवयानैः पथिभिर्यात ॥८॥

Word-Meaning: - (वाजेवाजे) संग्रामे संग्रामे (अवत) रक्षत (वाजिनः) बहुविज्ञानान्नबलवेगयुक्ताः (नः) अस्मान् (धनेषु) (विप्राः) मेधाविनः (अमृताः) मृत्युरहिताः (ऋतज्ञाः) य ऋतं सत्यं जानन्ति ते सत्यं व्यवहारं ब्रह्म वा जानन्ति ते (अस्य) (मध्वः) मधुरादिगुणयुक्तस्य (पिबत) (मादयध्वम्) आनन्दयत (तृप्ताः) प्रीणिताः (यात) (पथिभिः) (देवयानैः) विद्वन्मार्गैः ॥८॥
Connotation: - विदुषः प्रतीश्वरस्येयमाज्ञाऽस्ति यूयं विद्वांसो धार्मिका भूत्वा सर्वेषां रक्षां सततं विधत्त स्वयमानन्दिता महौषधरसेनारोगास्सन्तस्सर्वानानन्द्य तर्पयित्वाऽऽप्तमार्गैः स्वयं गच्छन्तोऽन्यान् सततं गमयत ॥८॥ अत्र सवित्रैश्वर्यविद्वद्विदुषीगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टात्रिंशत्तमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांना ईश्वराची ही आज्ञा आहे की, तुम्ही धार्मिक विद्वान बनून सर्वांचे निरंतर रक्षण करा व महौषधींच्या रसाने निरोगी बनून सर्वांना आनंदित व तृप्त करून धर्मात्म्याच्या मार्गाने स्वतः चालून इतरांनाही निरंतर त्याच मार्गाने चालवा. ॥ ८ ॥