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अनु॒ तन्नो॒ जास्पति॑र्मंसीष्ट॒ रत्नं॑ दे॒वस्य॑ सवि॒तुरि॑या॒नः। भग॑मु॒ग्रोऽव॑से॒ जोह॑वीति॒ भग॒मनु॑ग्रो॒ अध॑ याति॒ रत्न॑म् ॥६॥

English Transliteration

anu tan no jāspatir maṁsīṣṭa ratnaṁ devasya savitur iyānaḥ | bhagam ugro vase johavīti bhagam anugro adha yāti ratnam ||

Pad Path

अनु॑। तत्। नः॒। जाःऽपतिः॑। मं॒सी॒ष्ट॒। रत्न॑म्। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। इ॒या॒नः। भग॑म्। उ॒ग्रः। अव॑से। जोह॑वीति। भग॑म्। अनु॑ग्रः। अध॑। या॒ति॒। रत्न॑म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:38» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा आदि मनुष्यों को क्या करके क्या प्राप्त करने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (उग्रः) तेजस्वी (जास्पतिः) प्रजा पालनेवाला (सवितुः) सर्वान्तर्यामी (देवस्य) सब प्रकाश करनेवाले के (भगम्) ऐश्वर्य्य को (इयानः) प्राप्त होता हुआ जिस (रत्नम्) रमणीय धन को स्वार्थ (मंसीष्ट) मानता है (तत्) उस को (नः) हम लोगों के लिये (अनु) अनुकूल माने जिस (भगम्) ऐश्वर्य्य को (अवसे) रक्षा आदि के (अनुग्रः) तेजरहित जन (जोहवीति) निरन्तर ग्रहण करता है वह (रत्नम्) रमणीय धन (अधः) हीन दशा को (याति) प्राप्त होता है ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो राजा परमेश्वर की सृष्टि में सब की रक्षा के लिये प्रवृत्त होता है, वही सब ऐश्वर्य को पाकर सब को आनन्दित कराता है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजादिमनुष्यैः किं कृत्वा किं प्रापणीयमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथोग्रो जास्पतिस्सवितुर्देवस्य भगमियानः यद्रत्नं स्वार्थं मंसीष्ट तन्नोऽनु मंसीष्ट यं भगमवसेऽनुग्रो जनो जोहवीति तद्रत्नमध याति ॥६॥

Word-Meaning: - (अनु) (तत्) (नः) अस्मभ्यम् (जास्पतिः) प्रजापालकः (मंसीष्ट) मन्यताम् (रत्नम्) रमणीयं धनम् (देवस्य) सर्वप्रकाशकस्य (सवितुः) सर्वान्तर्यामिणः (इयानः) प्राप्नुवन् (भगम्) ऐश्वर्यम् (उग्रः) तेजस्वी (अवसे) रक्षणाद्याय (जोहवीति) भृशमाददाति (भगम्) ऐश्वर्यम् (अनुग्रः) अतेजस्वी (अधः) हीनताम् (याति) प्राप्नोति (रत्नम्) रमणीयं धनम् ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यो राजा परमेश्वरस्य सृष्टौ सर्वेषां रक्षणाय प्रवर्तते स एव सर्वमैश्वर्यं लब्ध्वा सर्वानानन्दयति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो राजा परमेश्वराच्या सृष्टीत सर्वांचे रक्षण करण्यास प्रवृत्त होतो तोच सर्व ऐश्वर्य प्राप्त करून सर्वांना आनंदित करतो. ॥ ६ ॥