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अपि॑ ष्टु॒तः स॑वि॒ता दे॒वो अ॑स्तु॒ यमा चि॒द्विश्वे॒ वस॑वो गृ॒णन्ति॑। स नः॒ स्तोमा॑न्नम॒स्य१॒॑श्चनो॑ धा॒द्विश्वे॑भिः पातु पा॒युभि॒र्नि सू॒रीन् ॥३॥

English Transliteration

api ṣṭutaḥ savitā devo astu yam ā cid viśve vasavo gṛṇanti | sa naḥ stomān namasyaś cano dhād viśvebhiḥ pātu pāyubhir ni sūrīn ||

Pad Path

अपि॑। स्तु॒तः। स॒वि॒ता। दे॒वः। अ॒स्तु॒। यम्। आ। चि॒त्। विश्वे॑। वस॑वः। गृ॒णन्ति॑। सः। नः॒। स्तोमा॑न्। न॒म॒स्यः॑। चनः॑। धा॒त्। विश्वे॑भिः। पा॒तु॒। पा॒युऽभिः॑। नि। सू॒रीन् ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:38» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन सब को प्रशंसा करने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यम्, चित्) जिस परमेश्वर की (विश्वे) सब (वसवः) वे विद्वान् जन जिन में विद्या वसती है (गृणन्ति) स्तुति कराते हैं वह (सविता) सब को उत्पन्न करनेवाला (देवः) सूर्यादिकों का भी प्रकाशक ईश्वर हम लोगों से (आ, स्तुतः) अच्छे प्रकार स्तुति को प्राप्त (अस्तु) हो और वह (अपि) भी (नमस्यः) नमस्कार करने योग्य हो (नः) हमारी (स्तोमान्) प्रशंसाओं को और (चनः) अन्नादि ऐश्वर्य को भी (धात्) धारण करे तथा (सः) वह (विश्वेभिः) सब के साथ (पायुभिः) रक्षाओं से (सूरीन्) विद्वानों की (नि, पातु) निरन्तर रक्षा करे ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस ईश्वर की सब धर्मात्मा सज्जन प्रशंसा करते हैं, जो हम लोगों की निरन्तर रक्षा करता, हम लोगों के लिये समस्त विश्व का विधान करता है, उसी की हम लोग सदा प्रशंसा करें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कस्सर्वैः प्रशंसनीय इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यं चिद्विश्वे वसवो गृणन्ति स सविता देवोऽस्माभिरा स्तुतोऽस्तु सोऽपि नमस्योऽस्तु नोऽस्माकं स्तोमान् चनश्च धात् स विश्वेभिः पायुभिस्सूरीन्नि पातु ॥३॥

Word-Meaning: - (अपि) पदार्थसंभावनायाम् (स्तुतः) प्रशंसितः (सविता) सर्वोत्पादकः (देवः) सूर्यादीनामपि प्रकाशकः (अस्तु) (यम्) (आ) समन्तात् (चित्) अपि (विश्वे) सर्वे (वसवः) वसन्ति विद्या येषु तेषु ते विद्वांसः (गृणन्ति) स्तुवन्ति (सः) (नः) अस्माकम् (स्तोमान्) प्रशंसाः (नमस्यः) नमस्करणीयः (चनः) अन्नादिकमैश्वर्यम् (धात्) दधातु (विश्वेभिः) सर्वैस्सह (पातु) रक्षतु (पायुभिः) रक्षाभिः (नि) नितराम् (सूरीन्) विदुषः ॥३॥
Connotation: - हे मनुष्याः ! यस्येश्वरस्य सर्व आप्ताः प्रशंसां कुर्वन्ति योऽस्मान् सततं रक्षत्यस्मदर्थं सर्वं विश्वं विधत्ते तमेव वयं सर्वे सदा प्रशंस्येम ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! ज्या ईश्वराची सर्व धर्मात्मा प्रशंसा करतात, जो आमचे निरंतर रक्षण करतो, आमच्या सर्व जगाचे नियम तयार करतो, त्याचीच आम्ही नेहमी प्रशंसा करावी. ॥ ३ ॥